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________________ जान्युआरी- २०१९ १२९ वर्णन से स्पष्ट है कि चौथे देवलोक से तीसरे देवलोक के देव 'संख्येयगुण' ही माने जाने चाहिए एवं मूलपाठ विषयक प्राप्त पाठान्तरों 'असंखेज्जगुणा' एवं 'संखेज्जगुणा' में से 'संखेज्जगुणा' वाले पाठ को ही शुद्ध समझना चाहिए । सन्दर्भ स्थल (References) १. "माहिद कप्पे देवा असंखेज्जगुणा, संणकुमारे कप्पे देवा असंखेज्जगुणा" ___ - श्रीमत् प्रज्ञापना सूत्र, पद ३, सूत्र ३३४ (मुद्रित संस्करण में प्राप्त - अशुद्ध पाठ) २. (i) "प्राचीन जैन व्याख्याकारोए तेमना व्याख्याग्रन्थोमां प्रसंगे प्रसंगे जैन आगमो अने तेना ऊपरना व्याख्याग्रन्थोनां उद्धरणो तथा अवतरणो आप्यां छे. आवां अवतरणो अमने ज्यांथी पण मळी आव्यां अथवा अमारा ध्यानमां आव्यां, ते बधानो उपयोग अमे अमारा प्रस्तुत सम्पादनमा को छे, अन्य सम्पादनो मां करीशुं - करवो ज जोईए ॥" - नंदिसुत्तं अणुओगद्दाराइं च, सम्पादकीय, पृ. १३ (अमारी आगम संशोधन पद्धति), सम्पादक-मुनि श्रीपुण्यविजयजी आदि, प्रकाशक-श्री महावीर जैन विद्यालय, मुंबई । (ii) "किसी ग्रन्थ का सन्दर्भपाठ यदि किसी अन्य ग्रन्थ में उद्धरण के रूप प्राप्त होता है तो उसे महत्त्वपूर्ण प्रमाण के रूप में माना जाना चाहिए" - डॉ. विरूपाक्ष जड्डीपाल से हुई प्रत्यक्ष चर्चा के आधार पर (६/३/ २०१८) [सचिव - महर्षि सान्दीपनि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन, डॉ. प्रो. विरूपाक्ष वि. जड्डीपाल - हस्तलिखितग्रन्थविज्ञान (Manuscriptology), ग्रन्थसम्पादनविज्ञान (Textual Criticism) एवं प्राच्यलिपिविज्ञान (Pa leogranhy) के विशेषज्ञ एवं कुशल विद्वान्] ३. "अथ देवगतौ स्वस्थानेऽल्पबहुत्वमाह - थोवाणुत्तरवासी असंखगुणवुड्ढि जाव सोहम्मो । भवणेसु वंतरेसु य संखेज्जगुणा य जोइसिया ॥ वृत्तिः - शेषदेवापेक्षया स्तोका एवाऽनुत्तरविमानवासिनो देवाः । तेभ्यो ग्रैवेयकवर्त्तिनोऽसङ्ख्येयगुणाः । एतेभ्योप्यच्युतेऽसङ्ख्येयगुणाः । ततोऽप्यारणे, इतोऽपि प्राणते, अस्मादप्यानते कल्पेऽसङ्ख्येयगुणा देवाः । एवं क्रमेण प्रतिकल्पमस
SR No.520578
Book TitleAnusandhan 2019 01 SrNo 76
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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