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________________ १३० अनुसन्धान-७६ ख्येयगुणावृत्तिस्तावन्नेया यावदीशानकल्पनिवासिदेवेभ्यः सौधर्मे कल्पे सङ्ख्येयगुणा देवा इति प्रस्तुतग्रन्थाभिप्रायः । स चाऽसङ्गत एव लक्ष्यते । यतो महादण्डकेऽनुत्तरविमानवासिभ्य आनतकल्पं यावत् सङ्ख्यातगुणैव वृद्धिरुक्ता। माहेन्द्रदेवेभ्योऽपि सनत्कुमारदेवाः सङ्ख्येयगुणाः । ईशानदेवेभ्योऽपि सौधर्मे देवाः सङ्ख्येयगुणाः प्रोक्ता इति । सौधर्मदेवेभ्यो भवनेषु ये भवनपतिलक्षणा देवाः प्रतिवसन्ति तेऽसङ्ख्येयगुणाः । एवमेतेभ्यो व्यन्तरेष्वप्यसङ्ख्येयगुणत्वं वाच्यम् । व्यन्तरसुरेभ्यस्तु ज्योतिष्कदेवाः सङ्ख्येयगुणाः महादण्डके तथैव पठितत्वात् । इति गाथार्थः" । - जीवसमास, गाथा २७४ तथा उस पर मलधारी हेमचन्द्र सूरि कृत वृत्ति, ___सम्पादक-आ.श्री शीलचन्द्रसूरिजी पृष्ठ-२३१-२३२ ४. जीवसमास प्रकरणम् (वृत्ति सहित) पृ. १२८, टिप्पण ५, सम्पादक-आ.श्री शीलचन्द्रसूरिजी, प्रकाशक-जैन ग्रन्थ प्रकाशन समिति, खंभात, सन् १९९४ ५. यहाँ 'जोतिसिया भावदेवा संखेज्जगुणा' - यह पाठ लिखा है । यह शुद्ध पाठ हस्तप्रत में है । श्री भगवती सूत्र के अनेक मुद्रित संस्करणों में एवं हस्तलिखित प्रतियों में यहाँ 'असंखेज्जगुणा' पाठ है, जो कि कथमपि उपयुक्त नहीं है । यह पाठ भगवती सूत्र की प्राचीन हस्तलिखित प्रतियों में द्रष्टव्य है। ६. (i) ध्यातव्य है कि श्री भगवती सूत्र की अभयदेवसूरि कृत वृत्ति के मुद्रित संस्करणों, यथा - आगमोदय समिति (पत्र ५८७b), हर्षपुष्पामृतग्रन्थमाला (पत्र ६९८), राय धनपतसिंह बहादुर (पत्र १०५८b) आगमसुत्ताणि सटीकम् - मुनि दीपरत्नसागर (भाग ६, पृष्ठ ८७), श्रीपाल नगर ट्रस्ट - मुनि दिव्यकीतिविजयजी (पृष्ठ ९७९), जैन विश्व भारती, लाडनू - भगवई - खण्ड ४ - परिशिष्ट ५ (पृष्ठ ४३७), [भगवती जोड़ - खण्ड ४ ढाल २६७ - पृष्ठ १०२ - जैन विश्व भारती, लाडनू] - इन सभी मुद्रित संस्करणों में 'सणंकुमारे कप्पे देवा असंखेज्जगुणा' ऐसा अशुद्ध पाठ है। (ii) साथ ही श्री अभयदेवसूरि कृत वृत्ति की कतिपय हस्तलिखित प्रतियों (पाकाहेम १००००, पाकाहेम १०५, पाकाहेम १४७९३, इत्यादि) में तो 'सणंकुमारे कप्पे देवा असंखेज्जगुणा... सोहम्मे देवा अंसखेज्जगुणा' - इस प्रकार दो स्थलों पर अशुद्ध पाठ है ।। (ii) श्री भगवती सूत्र की श्री दानशेखरसूरि कृत वृत्ति (मुद्रित संस्करण - ऋषभदेव केशरीमल संस्था - विक्रम संवत् १९९२) में भी 'सणंकुमारे
SR No.520578
Book TitleAnusandhan 2019 01 SrNo 76
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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