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जान्युआरी- २०१९
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वीज परि चंचल सहू रे धन योव[न] घर वास ।। देखता आयु जाइ जीवत्त(तु) रे मरण तुसि वीसास रे राजा० ॥१२॥ ठामि ज बिटु(तु) तप करइ रे मौन धरेइ मनमंत । विषय तणी वाछा करइ रे त(ते) लहइ भवनु अंत रे राजा० ॥१३॥ दधिवाहन राजा तणी रे बेटी चंदनबाल । मूली मस्तक मूडीउ रे वेणी वेध्या वाल रे राजा० ॥१४॥ पति वाहहरा सुणी रे, बा(छां)डी तृण परि राज । मयणरेहा सुत संबा(बो)धी रे, सारिउ जीवतु काज रे राजा० ॥१५॥ बारस भोगवी रे राजा विलसी बारइ कोडि । घृ(थु)लिभद्र संजमश्री वरी मरट मोमि(डि)उ रे राज० ॥१६।। सविहाणइ पय प्रणमी रे जंबू बे कर जोडि । आठ रमणि जिणि परिहरी रे कणय नवाणू कोडि रे राजा० ॥१७॥ कमलावतीइं निवुनिवा रे रायनह धि उपदेस । पापीनई लागइ नही रे क्रोधाध हुउ नरेस रे राजा० ॥१८॥ बहुल कर्म प्राणी प्रते रे प्रति(बो)धइ दिइ वीतराग, तेहy जीव जागइ नही रे साहमु धराइ मनि राग रे राजा० ॥१९॥
॥ ढाळ ॥ राय रुठउ रोसिं करी रे, सती मइ कर संताप । कामिनि कहइ रा प्रति रे, तू छंइ माहरु बाप ॥२०॥ इंद्र किवार इआह आवइ रे, न करइ मझ सील भंग । तु मूरख छइ त्रिणा समु रे, न करूं परसंग ॥२१॥ परनर संग न करूं परनो, तिमइ सीखउ जिनधर्म । तारी मझनइ तूसिं मारिसि, माहरई माहरी कर्म ॥२२॥ जिम मारि करइ तव राजा, तिम तिम कर्म अहा(ही)आसइ । अरिहंत वारणह पोहवइ मझनई, माहरूं जीवित जासइ ॥२३॥ सतीइ बाप इसिउ कहिउ रे, राय मनि धायु. रोस ।। पांवसई नाडी नित माइरइ रे, दिइ तव कर्मनइ दोस ॥२४॥ दुख अनंता तिहां देखइ रे, कर्मतणां फल वाहि । सर्वांगि लोहभरा रे, थालवाडामां माहि ॥२५॥