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अनुसन्धान-७६
वाडामिहि घाली राजा, पाप वचन कहि जाइ । सती कहि तु माहरु भाइ, हुं छउं ताहरी बाई ॥२६॥ तू राय रुठउ माहरी काया, कटका करिज्ये राई । काया कलपी मइछइ तुझनई, राखं सीलसखाइ ॥२७॥ काया अनंती जीविं लही रे, न लहिं कहिइ सील ओक । पाय पडइ मीनति करइ रे, तरवइ उपाय अनेक ॥२८॥ लोत देखाडइ नितु निवा रे, बोलइ हीण वचन । कमला तूं तिलमात्र रे, नवलि सील रतन ॥२९|| सीलइ मेरु पर्बत जिम निश्चल राभ(य) अतरि जिम थाली । राजा सर्वांगि खीलाणू न सकइ हाली वाली । सासणिदेव ति कीरति कीरतिवर्धन कीधुं मरिवा सरिखु । थांभानी परि थंसी राखिउ सीलनु महिमा निरिखु ॥३०॥
॥ ढाळ ॥ कमला कंथ जागउ मूती, अनइ देखइ बालि, गहिबरु हुउ थाइसिउं, पेटि पडी दुख झाल । दीवउ करीनइ घरि घरि, सघलि नगरि तिहां जोइ, कोइ सिद्धि न जाणइ, नेत्र करियां राता रोई ॥३१॥ राजा रोई सघले जोई, ते जीव किहां न लाधु, आरति पूरइ दुखि झूरइ, दारुण दुखि दाधु । सिद्धि बुद्धि गई कमला, विरहइ गहिलु हुउ गाढउ, पहिलु राजा ति सुत दीसइ, जीव जासि इसिउं वहिलउ ॥३२॥ किसिइ करम संयोगि आव्या केवलन्यानी, जइ राजा पूछइ कमला किहां छइ छानी । जत सती कहइ वरतांत कीरतवरधान तस ठाणि, आवी आकरसी लेइ गयु आपणइ गामि ॥३३॥ आपणइ गामिडउ कामि बहु छइ करइ मार, विष्टा पाड माहे छइ घाली राखइ सील अपार । सूरजि किरण कहींइ नवि लागा दुखइ छइ केम्म, इ सुगुरु भणई कुणई कर्म छूटइ रथवल्लभ सुणि इम्म ॥३४॥