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________________ जान्युआरी- २०१९ १०९ इणरी कूखई गर्भ ऊपनो दीसई छइ निरधारो रे कंत तणो सुख पण न दीठउ तो ओ कवण विचार रे. १५९ जाणांछां को कर्मतणइ वसि लंछण इणनइ आयो रे तिहांथी अणबोली ऊठीनई राणीनई संभलायो रे. १६० बहूई तुम्हारीई पदक नीपायो छे कुल कलंक चडायु रे नजरई निरखीनई साच पूछु किण विधि कर्म लगायो रे.१६० वयण सुणीनई सासु ऊठी जाई जोआं अंग रे फिट रे काम किस्योनई कीधो मुडायुं उत्तम अंग रे. १६१ निर्मल कुल शुचि दोस उपायो तई ओ कर्म नीपाई रे सघलो अहिलोज मारउ खोया फल नही पामइ काई रे. १६२ देश विदेशे वात वंचासइ लोक करेसई हासी रे उज्वल यशनई कालि कलाई ओ तुं किस्! अविमासी रे १६३ वडे वडीले राज दीवाणे ऊखाणो थास्यइ रे परीयारउं ऊतरस्यई पाणी जूंनी कीरति जासई रे. १६४ अहवा बोल कहीनई राणी ऊठी रोस भरांणी रे। जाती जाती अम विमासइ जण हासुं घरि हाणी रे. १६५ कहई हवइ किसी विधि कीजई अकई बुद्धि न सूझई रे । राय बोलाई भेद जणाव्यो जे गति सघली बूझई रे. १६६ दासी मेल्ही राय तेडायो सयल संकेत सुणायो रे राय सुणी दिल्लगीर थयो घणुं भंडो काम कमायो रे. १६७ तेडउ उहरी वहूनई पूछो वात तणो विरतंत रे । किणरे भेदई कारिज कीg मरम लही अकंति रे. बोलावी अंजना सिंहा आवी बइठी निश्चल मन्न रे लाज तणावी सूसरो बोलइ माठे दृढ वचन्न रे. १६९ अह अवस्था किम ऊपनी साच कहेज्यो अह्म रे । जीव सदाई कर्म तणई वसि दूषण को नहीं तुह्म रे. १७० सती विमासइ चित्त संघातइ वात पडी अवलंक रे साच कहीजई तूउं छूटीजई नहींतरि चडइ कलंक रे. १७१
SR No.520578
Book TitleAnusandhan 2019 01 SrNo 76
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2019
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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