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________________ ८६ अनुसन्धान- ७५ (२) निर्मला चित्त करीनइ जोइ, त्रिभुवनि नही अनेरउ कोइ, प्रकृति पुरुष तम्हि करउ विभेद, तु तम्हि मुगता मुणिवर भेद. ३३ चंद्र सूर बिहु पूरउं ठाउ, काल रूप राखे तू राहु, रवि जो अंबर ससिहर गिलइ, तउ ते मुणिवर मुगता (ती) मिलइ . ३४ छइलपणइ छइदरिसण मिलइ, जिणसासण जयणा नवि टलइ, मूरति इसी नवि दीसइ देव, जीहं पन्नग सुर नर करइ सेव. ३५ जगि सचराचर देखइ आप, दहइ करम तउ एक ज व्याप, केवलि बोलइ मुगतिनउं रूप, दीपकोडि तेजिसउं सरूप. ३६ झंखइ जोगी महूइ आल, जो नवि जाणइ वंची काल, कालिइ सुर नर पन्नग ग्रसिया, योग-विहूणा कालिई ग्रसिया. ३७ निम्मल शिसि - खंड निकलंक, सकति कुंडलिनी वदन मयंक, अमृत-कला ते अहनिसि झरइ, जीरवइ योगी तउ नवि मरइ. ३८ टलइ व्याधि सर्वंगिइ वीर, चंदु झरइ जो खारउं नीर, त्रूटइ कुष्ट अढार जाइ, वलीपलित कषाय नवि थाइ ३९ झरतउ घृत मधु साकर जिसिउ, अमर विद्याधर सिद्धरूपइं तिसउं, चंद्र झरइ जउ भीडइ शक्ति, रवि शशि बिहूं जण करइ ते विगति. ४० डाहिम साची जोसी जाणि, नव ग्रह लगन बार करि बाणि, भू अप्य उ वाउ आकाश, जाणइ मुणिवर वहन ( त ? ) इ सासि. ४१ ढालइ जल भूमंडल रही, अंबर भरइ सु मुणिवर सही, बालइ नीर न बंधइ कूल, सींचइ तरुअर ऊरधि मूल. ४२ raण एक त्रिहुं मेलो होइ, इड पिंगल नई सुखमनइ सोइ, मन-पवनि चेतम (ण) सिउं वहइ, तत्त्व विचारउ साधक लहइ. ४३ तत्त्वतउं जो परमाण, पल पंचास पुछवि अहिनाण, वीस च्यालीसह ए अनुक्रमी, त्रीस जि नवइ अंति एउ मरण(?) ४४ थिर थाईन जोउ जाण, एह वात नवि प्राण विनाण, एउ वात नवि अनुभवी कही, सहूइ जोउ निश्चल रही. ४५ दाखइ जोसी शास्त्र अपार, लक्ष बिहुं किम जाउं पार, अतीत अनागत बोलइ ज्ञान, तउ तीह तत्त्व ब्रह्मनउं ज्ञान. ४६
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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