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________________ सप्टेम्बर - २०१८ ऋषि जिणशासणि साधनं योग, संयमि सतरि भेदि उपयोगि, नियमासन करइ प्राणायाम, ध्यान धारण धेउ लय शम-ठाम १९ ॠझइं योगी जीतइ सासि, मन मृगलेप दिखाडई पास, प्राणायाम प्रसिद्ध करम, मन मरिवा धुरि एह जि मरम २० लइ लागइ जउ ध्याइ रूप, आपाआपि जोइ सरूप, आपह परह ज भांजइ विगति, तु तिह नर छइ निश्चइं मुक्ति. २१ नृपि ठाए नावई मुनिराय, मन पवनह जउ पूरइ ठाय, षट्चक्र ग्रंथ भेद जो करइ, कला- बिंदु-नाद मनु मरई. २२ एकाकार हइ सहू कोइ, उच्च नीच कुल एक न होइ, त्रिवेणी संगम चेतन मिलइ, एकाकार तिहां नवि न टलइ. २३ ह्रीँकार करउ हृदय कमलि, क्लौंकार [...? ] व्यो तस ज मिलि (?), जपइ लक्ष एक जो नालि, तेजि फ(फु) रंतइं जगति विशालि २४ ओंकारि जिनवर चउवीस, हरिहर ब्रह्मा अनइ जगदीस २५ ॐ औपजइ अधर मझारि, पवन संजोगिई प्रिउ बारि, आधारह अंबर विचार, सुखमनु झरइ गजदंत मझारि. २६ अंबर - रति संयोगइं भरइ, योगी जो सो अंबर सरइ, अंबर झरइ त जगत आधार, अनभवि साधक साधकुमारु. २७ अप्प - तेजह आकुंचन करउ, रेचक पूरक कुंभक धरउ, मात्र बार चउवीस छत्रीस, प्राणायाम करई ते ईस. २८ कमल हृदय केवलि विचार, ज्ञान-पयोगि वस्तु-1 -विचार, जीव- करमनउ सिउ संयोग, उतपति विगम ध्रुव- उ[प] योग. २९ खग तव मुणिवर खेहमाहि भमइ, परिजन वाडी एकलउ रमइ, तिहां तउ पुग्गल - देस-विचार, तु ते केवलि अनंत अपार. ३० गंगा यमुना शोषइ नीर, सरसति अंग पखालइ धीर, ते नवि ऊपजई दसमइ मरइ, ते साधकि त्रिभुवनि विस्तरइ ३१ घरि घरि मंदिर साधइ योग, विषय - विरत ते शक्ति-संयोगि, शक्ति - कुंडलिनी ब्रह्म-विलास, अधि ऊरधि जु हुई अभ्यास. ३२ ८५
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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