SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८४ अनुसन्धान-७५(२) भले भणे जे सुखमन-शक्ति, इड पिंगल त्रीजी तिह विगति, कामह विषह निरंतर भेउ, शक्ति-संयोगि अकल अजेउ ५ बिंदु-ध्यान गुरुवयणि विचार, एक पुरुष मिलइ त्रिण्हिइ नारि, नारि बिहुं नर करइ विलास, जागइ त्रीजी मन अभ्यासि ६ लीहडी नारि बिहुं नर वाधि, नर पश्चिम लेई त्रीजी साधि, गगन-चहुटइ चाचरिवास, निश्चल वससि तु थिर करि सास ७ ॐकारिं ध्याननु विचार, ॐकार जग[नु] आधार, ॐकार विश्व, रूप, ॐकारि मुक्ति-स्वरूप. ८ न(ना)सा नयणि ते निरखी जोइ, प्रणव-रूपि पदमासन होइ, आसन बीजउं दृढ करि कमल, कला-बिंदु-नाद जोइ तुं निर्मल ९ मन पिंड-रूप अपार, षट् चक्र-भेदि जोइ विचार, मनु अनुमति जउ खिण इकु रहइ, रूपातीति सु केवल लहइ १० सिद्ध निरंतर साधइ जोग, विषइ पंच ते मागई भोग, विद्या मंत्र यंत्र रस सिद्धि, गुटिका मूली चरण बुद्धि ११ धंधइ पडिया तत्त्व नवि लहई, मूढा योग निरालंब कहइं, गुरु विण नवि जाणइ न(ते) करम, मन मरिवा धुरि केहउ मरम. १२ अरिहंत अविगत अकल अपार, हरि हर बंभ बोधर(इ) विचार, ए सवि दीसइं शक्ति-संयोग, अहनिसि लीणा विषयाभोगि १३ आसणि आदि सकति अवधारि, सासती बइठी ब्रह्म-दूआरि, अध भीडी उरधि जागवइ, विषयासुख ते मनि भोगवइ १४ इड पिंगल सवि साधक का(कहइ, सुखमन त्रीजी विरला कहइ ए वीस ग्रंथ भेद जो जाणइ, निश्चल रवि ससि द्रवि अहिनाण[इ] १५ ईणि परि जोउ हंस विचारु, दस प्रवेसि तस निरगमि वा(बा)र, एकवीस सहस छ सई निसि दीस, अजपाजप इति मुनि जोगीस १६ उदरि अंग सवि व्याधि विनाश, क्षय कुक्षा(ष्टा)दिक स्वासन कास, सहू कहइ ते लोक प्रचार, हंस जपई तउ योग विचार १७ ऊरध अधह विगति तू जाणि, पूरी प्राणि भीडउ उडि आणि, आकुंचनि ऊरधि लिउ पवन, इणि परि सी(सा)धक गगनिहिं गमन १८
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy