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अनुसन्धान- ७५ (२)
बीजा न कल्पइं । हिव दसमउ छर्दितदोष कहइ छइ । जे अशन - पानादिक विहरतां छाडइ, अरहउ परहउं नाखइ, तिम महात्मानइ विहरिडं न सूझई । जेह भणी छंडाती भिक्षा विहरतां छज्जीवविराधनादिक घणा घणा दोष ऊपजई । एह वात ऊपरि मधुबिंदुनउ दृष्टांत जाणिवउ । ते किम् ?
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एक महात्मानइ विहरतां खीर खांड घीनउ बिंदूर एक भुइ पडिउं । तेहनी गंधिइं माखी आवी । अनइ मांखी देखी घिरोली आवी । घिरोली देखी मार्जारी आवी । मार्जारी देखी श्वान आविउ । श्वान देखी बीजउ श्वान आविउं । ते श्वान माहोमाहिं विढिवा लागा ते श्वान विढता देखी तेहना धणी लोक आव्या । तेहनइ माहोमाहि वेढि लागी । इम आघउं घणउं ऊ ( झ ) गडउ हूउं । तेह भणी छंडातउ आहार महात्माहुइ विहरिडं न कल्पइ । एतलइ दसमउ छर्दितदोष कहिउ । एतलइ ग्रहणेषणाना दस दोष कह्या ॥९०॥
इय सोलस' सोलस' दस उग्गम' उपा( प्पा ) यणे - सणा दोसा' ।
इय सोल० ॥ इम सोल उद्गमदोष - १ तथा सोल उत्पादनादोष - २ दस एषणादोष- ३ । एतलई महात्मानई आहारशुद्धि आश्री बइतालीस दोष वखाण्या । ए दोष सघलाइ केन्हां छइ । ए पहिला दोष सोलइ गृहस्थना कीधा । बीजा सोल दोष महात्माना कीधा । अनइ त्रीजा दस दोष महात्मा अनइ गृहस्थ बिहुं जणना कधा । इम त्रिहुं प्रकारे ४२ दोष जाणिवा । हिव सूधउ आहार जिमतां वली पांच दोष ऊपजइं । ते पांचे ग्रासैषणाना दोष वखाणइ छइ I
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संजोयणा' पमाणे इंगाल सधूम' को (का) रणे पढमा । सहि बहिरंतरे वा रसहेउं दव्वसंजोगा ॥९२॥
ज० ॥ आहार सरस करवा भणी जे द्रव्यांतरनउं संयोग मेलइ, ते
(पृ. ७६नी टि.) हाथ न खरडाइ, भाजन खरडाइ अनइ तलइ कांई ऊगरइ |३| हाथ न खरडाइ, भाजन न खरडाइ अनइ तलइ कांई ऊगरइ |४| हाथ न खरडाइ, भाजन खरडाइ अनइ तलइ कांई न ऊगरइ |५| हाथ न खरडाइ, भाजन न खरडाइ अनइ तलइ कांई ऊगरइ |६| हाथ न खरडाइ, भाजन न खरडाइ अनइ तलइ कांई ऊगरइ |७| हाथ न खरडाइ, भाजन न खरडाइ तलइ कांई न ऊगरइ II)