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________________ सप्टेम्बर २०१८ संयोजना कहीइ-१ । तथा प्रमाण - आहारनी मात्राधिक जिमइ - २ । तथा इंगालचारित्र हुइ अंगार सरीखूं जिमई - ३ | तथा सधूम चारित्र हुई धूम सरीखुं जिमइ४। तथा अकारणिइ जिमइ - ५ । ए पांच ग्रासेषणा जाणिवा । तेहमाहि पहिलुं संयोजनादोष वखाणइ छइ । वसति - उपाश्रयमाहि विहरी आव्या पूठइं अथवा बाहिर विहरतां जि रसनइ काजिइ खीर खांड घृतादिकनउ संयोग मेलइ ते संयोजना कहीयइ | रसगृद्धिना कारण भणी महात्मानं संयोजना वर्जिवी । एतलई पहिलउ संयोजनादोष कहिउ ॥९२॥ हिव बीजउ प्रमाणदोष वखाणइ छइ - - छइ धिइबल - संजमजोगा जेण न हायंति संपइ पए वा । तं आहारपमाणं जइस्स सेसं किलेसफलं ॥९३॥ धिइबल० ॥ जेतली आहारनी मात्राइ लीधइ महात्मानइ धृति- मननउ संतोष तथा बल- शरीरनउ बल संयमयोग - चारित्रनी क्रिया सीदाइ नहीं, संप्रति तीणइं दिहाडइ अथवा पए कहीइ बीजइ दिहाडइ जेतली मात्राइ लीधी हूंती चारित्रनी क्रिया रुडी परिइ करी सकइ ते आहारनी मात्रा प्रमाण जाणिवउं । अधिकउं जिमवउ इहलौकि अनइ परलोकिइ क्लेशफल- अनर्थनूं जि कारण हुइ । तेह भणी महात्माइ मात्राधिक आहार न लेवउ ॥९३॥ हिव अधिक जिमलां महात्मानइ घणा दोष ऊपजई । ते वात कहइ ७७ जे बहु अइबहुसो अइप्पमाणेण भोअणं भुत्तं । हादिज्झ व वामिज्झ व मारिज्झ व तं अजीरंतं ॥९४॥ जेण य० ॥ जेह भणी घणूं घणूं भोजन घणीवार बिवार अथवा त्रिणिवार ऊपहिरउं आकंठ लगइ भोजन कीधउं हूंतउं स्या स्या दोष करइ ? हादिज्झ वं० - विरेच करइ । अथवा वमन करइ । अथवा विसूचिका ऊपजावीनइ ते आहार अजरिउ हूतउ जिमणहार प्रतिइं मारइ जि । अथवा घणूं जिमिउं रागादिक उन्माद ऊपजावइ । तेह भणी मात्राधिक आहार महात्माइ सर्वथा वर्जिवओ ॥९४॥ हिव त्रीजउ अंगार अनइ चउथउ धूमरूप, ए बिन्हइ दोष वखाणइ छइ
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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