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सप्टेम्बर - २०१८
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हुइ भाव परिणमिउ न हुई, विहरवानउ भाव हीयामाहि गाढउ आविउ न हुई ते भाव आश्री अपरिणत कहीइ । अथवा विहरणहार बिहुं महात्मामाहि एकइ मनि आहार सूझतउ परिणमिउ छइ, बीजा महात्मानइ मनि आहार सूझवा आश्री संदेह छइ-तेह भाव आश्री अपरिणत कहीइ । एन्हउ आहार महात्मानइ न कल्पइं । एतलई आठमउ अपरिणतदोष कहिउं ॥८८॥
हिव नवमउ लिप्तदोष वखाणइ छइ -
दहिमाइलेवजुत्तं लित्तं तमगिज्झमोहओ इहयं । ___ संसट्टमत्त१-कर२-सावसेसदव्वेहि अडभंगा ॥८९॥ (९०)
दहि० ॥ दध्यादि लेप जे भाजन दही, खीर, तक्र शाकादिक लेपिइ करी खरडिउ हुई ते ल(लि)प्त कहीइ । सामान्यइं ते अग्राह्य, कारण पाखइ तीणइ भाजनि महात्मानइ विहरिउं न सूझइ । हिव इहां हाथ अनइ भाजन खरडिवा आश्री अनइ भाजननइ तलइ ऊगरवा आश्री आठ भांगा ऊपजइं । ते किम् ? हाथ भाजन खरडाइ अनइ तलइ काई ऊगरइ नही । तथा हाथ खरडाइ अनइ भाजन न खरडाइ पुण तलइ काई न ऊगरइ । अथवा हाथ न खरडाइं भाजन न खरडाई अनइ तलई कांई ऊगरइ । तथा हाथ न खरडाइं भाजन खरडाइं अनइ तलई कांई ऊगरइ । तथा हाथ न खरडाइं भाजन खरडाइं पुण तलइ कांई न ऊगरइ । तथा हाथ न खरडाइं भाजन न खरडाइं अनई कांई ऊगरइ । तथा हाथ न खरडाई भाजन न खरडाइं तलइ कांई न ऊगरई । हिव ए आठ भांगामाहि विसमां भांगा पहिलं-१, त्रीजउ-२, पांचमउ-३, सातमउं-४ ए च्यारि भांगा महात्मानइ सूझता हुइ । बीजा च्यारि असूझता जाणिवा । एतलइ नवमउ लिप्तदोष कहिउं ।।८९॥
हिव ए आठ भांगामाहि जे कल्पता हुइ, ते बोल अनइ दसमउ छर्दितदोष वखाणइ छइ -
इत्थ विसमेसु धिप्पइ छड्डियमसणाइ हुंति परिसाडि । तत्थ पडते काया पडिए महुबिंदुदाहरणं ॥१०॥ (९१) इत्थवि० ॥ हिव ए 'आठ भांगामाहि विषम भांगा महात्माहुई कल्पइं,
१. (हाथ, भाजन खरडाइ अनइ तलइ कांई ऊगरइ ।१।।
हाथ, भाजन खरडाइ अनइ तलइ कांई न ऊगरइ ।२। →