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सप्टेम्बर - २०१८
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थेर [अ]पहु पंड वेविर जरि अंधव्वऽत्त मत्त उम्मत्ते । कर-चरणछिन्न पगलिअ नियलंडुअ पाऊअ(आ)रूढो ॥८४॥
थेर० ॥ - स्थविर-डोकर-१, अप्रभु-सामान्य दासादिक-२, पंडनपुंसक-३, वेवकर-कंपवाई करी धूजतउ-४, जरि-जूरीउ-५, अंध-दृष्टिरहित६, तथा सातमउ बालक-७, मत्त-मदिराई मांत (८), उन्मत्त-भूतचेष्टित-९, करचरणछिन्न-जेहना हाथ-पग छेद्या हुइ-१०, पगलिअ गलि-अगल कोढनउ धणी११, अनियलिय अठीलि थालि-१२, अंडुअ-लाकडाना हाथ-पगनउ धणी१३, पाऊआरूढो- पावडी पहरिइं जे विहरावइ-१४ एतलानइ हार्थि महात्मानइ विहरिउं न सूझई ॥८४॥ तथा
खंडइ पीसइ भुंजइ कत्तइ लोढेइ विकेणे पिंजइ ।
दलइ विलोलइ जेमइ जा गुव्वणि बालवच्छा य ॥८५॥
खंडइ० ॥ जे स्त्री खांडती हुइ, तथा जे स्त्री पीसती हुइ, तथा जे स्त्री चिणादिक सेकती, तथा जे स्त्री कातती हुइ, तथा जे स्त्री कपास लोढती हुइ, तथा जे स्त्री कपास वीखणती हुइ, तथा जे स्त्री पीजती हुइ, [जे स्त्री दलती हुइ,] तथा जे स्त्री विलोती हुइ, तथा जे स्त्री जिमती हुइ, तथा जे स्त्री गुर्विणी-आठ मासनउ गर्भवती हुइ, तथा जे स्त्री बालकहुइ धवरावती हुइ । एतली स्त्रीनइ हाथिई महात्मानइ विहरिउं न सूझई ॥८५॥ तथा
तह छक्काए गिन्हइ घट्टइ आरभइ खिवइ दुट्ठजई।
साहारण चोरिअं तं देइ परक्कं परढे वा ॥८६॥
तह छ० ॥ तथा जे स्त्री पृथ्वीकायादिक छज्जीव हाथि लेती हुइ, अथवा छज्जीवनइं आंभडती हुइ, अथवा छज्जीवनउं आरंभ करती हुइ, तथा महात्मा आवता देखी छज्जीव हाथि थकउ भुंइ मूंकइ । एतली स्त्रीनइ हाथिई विहरिउं महात्मानइं न सूझई । अथवा जे वस्तु साधारण-घणा जणनइं संबंधि हुइ तथा जे वस्तु चोरीनइ दिइ । तथा पारकी-अनेरानी वस्तु दिइ । तथा अनेरा तापसादिकनइ कल्पी हुइ । जे वस्तु देवा वांछी हुइ । एतली वस्तु महात्मानइं विहरी न सूझइं ॥८६॥ तथा