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-अनुसन्धान- ७५ (२)
पहिला त्रिणि भांगां दुष्ट - विरूया, महात्माहुइ अकल्पता जाणिवा । छेहलउ भांगउ कल्पत हुइ । पुणतिहां गुरु- भारे ठाम अनइ लघु-हलूडं ठाम आश्री वली च्यारि भांगा ऊपजइं । ते किम् ? - मोटउं ठाम अनइ ढांकणइ मोटउं -१ । अथवा मोटउं ठाम अनइ नाहनुं ढाकणउं २। अथवा नाहनुं ठाम अनइ ढांकणुं मोटउ-३ । अथवा नाहनुं ठाम अनइ नाहनुं ढांकणुं - ४ । इम च्यारि भांगा ऊपजई । तेहमाहि बीजउ अनइ चउथउ ए बि भांगा सूधा । बीजा बि भांगा वर्जिवा । एतलइ चउथ पिहितदोष कहिउ ॥८१॥
हिव पांचमउ संहृतदोष कहइ छइ
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खिवि अन्नत्थमजुग्गं मत्ताउ देइ तेण साहरिडं । तत्थ सचित्ताचित्ते चउभंगो कप्पई चरिमे ॥८२॥
खिवि० || जे वस्तु महात्माहुइ देवा अयोग्य ते वस्तु अनेथि पृथ्वीकायादिकमाहि ठालवीनइ तीणइ ठालइ भाजनि जे आहार महात्माहुइ दियइ ते संहृतं कहीइ । हिव ईहां च्यारि भांगां ऊपजई । ते किम् ? - संचित्त वस्तु सचित्तमाहि ठालवइ - १ | अथवा सचित्त वस्तु अचित्तमाहि ठालवइ - २ । अथवा अचित्त वस्तु सचित्तमाहि ठालवइ - ३ | अथवा अचित्त वस्तु अचित्तमाहि ठालवइ४ । ए चिहुं भांगामाहि छेहलउ भांगउ महात्माहुइ कल्पइं । बीजा त्रिणि भांगा न कल्प ॥८२॥
तत्थ वि अथोव- - बहुपय चउभंगा पढम तइअगाइन्ना । जड़ तं थोवाहारं मत्तग मुक्ख बिय वियरिज्जा ॥८३॥
तत्थ० ॥ हिव एह छेहला भांगामाहि थोडा अनइ घणां आश्री वली च्यारि भांगा ऊपजइ । ते किम् ? - थोडामाहि थोडउं घालवइ-१ । अथवा थोडामाहि घणउं घालइ - २ । अथवा घणामाहि थोडउं घालइ - ३ । अथवा घणामाहि घणउ घाल - ४ । हिव ए चिहुं भांगामाहि पहिलउ अनइ त्रीजउ ए बि महात्माहुई देइ सकइ, तर ते भांगा कल्परं । बीजा बि भांगा वर्जिवा । जेह भणी ते मोट भाजन ऊपाडतां हलावतां चलावतां आत्मविराधना संयमविराधनादिक घणा दोष ऊपजइ । एतलइ पांचमउ संहृतदोष कहिउ ॥८३॥
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विछट्ट दायक दोष वखाणइ छइ
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