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अनुसन्धान-७५(२)
संकिय गहणे भोगे चउभंगो तत्थ दुचरिमा सुद्धा ।
जं संकइ तं पावं दोसं सेसेसु कम्माई ॥७७॥
संकिय० ॥ आधाकर्मादिक दोषे करी संदेहालुं आहार विहरइ । अथवा लज्जादिक करी संदिहालुं जिमइ; ते शंकितपिंड कहीइ । हिव ईहां विहरवा अनइ जिमवां आश्री च्यारि भांगा ऊपजइं । ते किम् ? संदिहालुं विहरइ, संदिहालुं जिमइ -१ । अथवा पहिलूं संदिहालूं विहरइ अनई पछइं पूछयां पूठिइं सूधउं जाणीनई जिमइ -२ । अथवा पहिलूं सूधउं जाणीनइ विहरिउ अनई पछई जिमतां कांई मनमाहि विकल्प ऊपजिइ तीणइ करी संदिहालुं जिमइ-३ । तथा सूधउ जाणीनई विहरिउ अनइं सूधउं जाणीनई जिमइ -४ । हिव ए चिहउ भांगामाहि बीजु भांगउ अनइ चउथउ ए बि भांगा सूधा महात्माहुइं कल्पता हुई । बीजा बि भांगा वजिवा। जेह भणी तेहे सेष बीजे बिहु भांगे आधाकर्मादिक बत्रीसदोषमाहि जे दोष श्सांक (शंका?) मनमाहि आवई ते दोष लांगइ । तेह भणी ते भांगा निषेध्या छइं । एतलई पहिलूं शंकितदोष कहिउ ॥७७॥ . हिव बीजउ म्रक्षित दोष वखाणइ छइ -
सचित्ता'ऽचित्त मक्खियं दुहा तत्थ भू-दग'वणे हि तिविहं ।
पढम' बीअं गरिहिअ- इयरेहिं दुविहं तु ॥७॥
सचित्त० ॥ सच्चित्ते करी' अथवा अचित्ते करी' जे हस्त अथवा भाजनादिक खरडियुं हुइ, तीणइ जे आहार विहरी ते प्रक्षितपिंड कहीइ । ते मेक्षित बिहुं प्रकारे हुइ । एक सचित्ते करी खरडिउं-१ अनइं अचित्ते करी खरडिउं -२ । हिव जे सचित्ति करी खरडिउं हुई ते त्रिहुं प्रकारइ जाणिवउं - पृथ्वीकाय' अपकायरे वनस्पतिकाय ए त्रिहुं प्रकारे सचित्त करी खरडिउं हुइ । तेह भणी पहिलुं सचित्त भांगउ इम त्रिहुं प्रकारे जाणिवउ १ । हिव बीजउ अचित्ते करी खरडिउ हुइ तेहइ भांगउ बीहुं प्रकार हुइ । एक गृह्या-निद्या वस्तु-मद्य, मांस, विष्टादिके अचित्ते करी खरडिउं हुइ । तथा बीजी रूडी वस्तु - घृत, कर्पूरादिक अचित्ते करी जे हस्त भांजनादिक खरडिङ हुइ । इम अचित्तना बि भेद जाणिवा ॥७८॥
हिव ए बि भेद वली वखाणइ छइ -