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________________ सप्टेम्बर २०१८ पातनादिक । अनइ विवाहकरणादिक योग कहीइं । हिव जे महात्मा आहारनइ काजिइं एतला वानां उपरिदसइ ( उपदिसइ ? ), ते मूलकर्मपिंड कहीइ । ए कर्म संसाररूपिडं वन वधारिवानू मूलगू कारण जाणिवउं एह भणी मूलकर्म महापापनउ कारण महात्माइ सर्वथा टालिवउं । ए मूलकर्म करतां जीवहिंसा, मैथुनप्रवृत्त्यंतरादिक घणा दोष ऊपजइं । अनइ जीव ए कर्म करतां गाढ निद्धंधस थाइ । तेह भी महापाप जाणीनइ वर्जिवउ ॥ ७४ ॥ एतलइ सोल उत्पादना दोष वखाण्या । इय वृत्ता सुत्ताउ बत्तीस गवेसणेसणादोसा । गहणेसणदोसे दस लेसेण भणामि ते मो ( ? ) ॥७५॥ 1 इय वुत्ता० ॥ मूलि महात्मानइ त्रिहुं प्रकारि एषणा कहीइ छि । ते किम् ? एक गवेषणा १) बीजी ग्रहणेषणा २) त्रीजी ग्रासेषणा ३) । ए त्रिहुं एषणामाहि पहिली गवेषणाना इय० इम वुत्ता - कहा - बोल्या । बत्रीस दोष सिद्धांतनइ मेलिइं आहारनी शुद्धि आश्री बत्रीस दोष कह्या । हिव बीजी ग्रहणेषणा भक्तादिक आहार विहरतां जे दोष ऊपजइं, ते ग्रहणेषणा कहीइ । तेहना दस दोष हूं वखाणूं छउ ॥७५॥ हिव ते दस दोषना पहिलूं नाम कहइ छइ संकिय' मक्खिय' निखित्त' पिहिय' साहरिय' दायगु - म्मी । अपरिणय' लित्त' छड्डिय" एसणदोसा दस हवंति ॥७६॥ हिव पहिलउ शंकितपिंड वखाणइ छइ ६९ - संकिय० । शंकित - आधाकर्मादिक दोषे करी जि आहार संदिहालुं हुइ - १ । प्रक्षित - सचित्तादिके करी खरडिउं जे भाजनादिक २। तथा सचित्ताचित्तादि करि जे भाजनादिक निक्षप्तुं - मूंकिउं ३ | तथा पिहित- सचित्ताऽचित्तादिके करी जे ढाक हुइ - ४ । तथा संहत विहरावानइ काजिइ अनेथि ऊपाडी लीधुं - ५ । तथा दायकि - विहरावणहारनउ मेल - ६ । तथा उन्मिश्र - सचित्ताऽचित्तादिके करी मिश्र - एकठउं - भेलिउं ७ । अपरिणत द्रव्य भाव आश्री अणपरिणमिउं ८ । तथा लिप्त - हस्तादिक खरडिउ ९ । तथा छर्दित - छंडातउ नंखातउ १० । सूधाइ आहार विहरतां ए दस दोष महात्मानं चीतव्या जोईइं । तेह भणी ए दस दोष जूजूया वखाणइ छइ ॥७६॥ -
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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