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अनुसन्धान-७५ (२ )
साहणजुत्ता थीदेवया य विज्जा विवज्जए मंतो । अंतद्वाणाइ फला चुन्ना नयणंजणाईआ ॥७२॥
साह० ॥ जाप - होमादिके करी जे साधिउ जोइई । अथवा जेहनउ अधिष्टायक स्त्रीरूप देवता हुइ, ते अक्षरहुईं 'विद्या' इसिउं नाम कहीइ । तथा जे साधिउ न जोइए गुणवेइ जि करी फल दिइ, तथा जेहनउ अधिष्टायक पुरूषरूप देवता हुइ ते अक्षरहुइ 'मंत्र' इसिउं नांम कहीइ१३ । तथा जीणइ चूर्णिई करी आंखि आंजीइ अथवा निलाडि तिलकादिक कीधइ हूंतई अंतर्द्धान आपणपाहुईं कुहूं देख नही अथवा वशीकरणादिक फल हुइ ते नयनांजनादिक चूर्ण कहा । हिव जे महात्मा विद्या, मंत्र, चूर्ण प्रकासीनइ आहार लिइ ते दोष वर्जिवा । एतलइ विद्यापिंड मंत्रपिंड चूर्णपिंडरूप ए त्रिणिइ दोष कह्या ॥७२॥
हिव पनरमउ योगपिंड वखाणइ छइ
सोहग्ग-दोहग्गकरा पायलेवाइणो वि जे जोगा । पिंडट्ठमिमे दुट्ठा जईण सुअवासिअमईणं ॥७३॥
सोहग्ग० ॥ जीणइ औषधनइ योगिई करी सोभाग्य वाधइ अथवा दौर्भाग्य हुइ । अथवा जीणइ औषधइ पगे लेप कीधइ जलस्तंभ अग्निस्तंभादिक फल हुइ ते चंदनधूपादिक औषधना योग कहीइ । एहवा योग आहारनइ काजिइ महात्माहुइ दुष्ट विरूया निषेध्या छइं सिद्धांतेइ करी जे महात्माना मन वास्या हुंइ जेहहुईं चारित्र ऊपरि घणी खप हुई ते महात्माहुंइ आहारनइ काजिई एहवी विद्या, मंत्र, चूर्ण, योग ए च्यारइ बोल सर्वथा टालिवा कह्या छई, इस्युं जाणिवउं । घणां औषध कूटीनइ जे भूकइ कीजइ ते चूर्ण कहीइ । अनइ ते औषध घसी एक ठांमे ली गुटिकादिक कीजइ, ते योग जाणिवा । एतलइ बारमउ, तेरमउ, चऊदसमउ अनइ पनरमउ ए च्यारि दोष का ||७३ ||
हिव सोलमं मूलकर्म दोष वखाणइ छई.
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मंगलमूली न्हवणाइ गब्भवीवाहकरण घायाई । भवणावणमूलकम्मंति मूलकम्मं महापावं ॥७४॥
मंगल० ॥ मंगलीकनइ काजि जे जडी-मूली आपीइं । तथा सौभाग्यादिकनइ काजिइ स्नान, रक्षाबन्धादिक कीजरं । तथा गर्भनउं करिवउं सातन