SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्टेम्बर मोदक परठवतां अनइ भावना भावतां ते महात्माहुइं केवलज्ञान ऊपनउं । इम जे महात्मा लोभिरं वाहिउ नगरमाहि घणूं घणूं भमी आहार मागइ, ते लोभपिंड कही ॥ इति लोभ ऊपरि केसरकसाधु दृष्टांतः ||४|| एतलइ क्रोधादिक च्यारि दृष्टांत कह्या ॥ हिव इग्यारमउ संस्तवपिंडदोष - वखाणइ छइ २०१८ - संबंधे थवो दुहा सोअ पुव्व पच्छा वा । दायारं दाणाओ पुव्विं पच्छा व जं थुणइ ॥७०॥ ॥ संस्तव बहुं प्रकारे हुइ । जे गुणस्तुति करीनई जे स्तविवउं, ते पहिलउं संस्तव कहीइ । अनइ बीजउ संबंधिई - सगपणिइं अथवा परिचय करी संस्तव हुइ । ए बिन्हइ जूजूआ वखाणइ छइ । ते किम् ? जे महात्मा विहरवा गिउ इंतउ पहिलुं । अथवा पछइ देणहार प्रतिइं वखाणइं । छता अथवा अछता गुणनी स्तुति करई, तुम्हे उदार, आगइ तुम्हे घणां घणां पुण्य करउ छउ इम साचउं अथवा जूठउं वखाण करी जे महात्मा आहार लिइ ते गुणस्तुतिरूप पहिलं संस्तव कहीइ ॥७०॥ हिव बीजउ संबंधरूप संस्तव वखाणइ छइ - - ६७ जणणि-जणगाइ पुव्विं पच्छा सास-ससुराइ जं च जई । आय-परवयं नाउं संबंधं कुणइ तदुण गुणं ॥ ७१ ॥ जणणि० || जे महात्मा विहरवा गिउ आहारनइ काजिइं माता- - पितानूं सगपण काढइ अथवा सासू-सुसरादिकनउ सगपण काढइ । तथा आपणउ अथवा आगिली विहरावणहार स्त्रीयादिकनउ मेल जाणीनइ संबंध काढइ । जउ ते स्त्री वडी हुइ तउ कहइ, तुम्हे माहरी माता अथवा सासू सरीखी छउ । अथवा समानवय हुइ, तुम्हे माहरी बेटी सरीखां छइ । इम जि परिचय करी जे आहार लिइ ते संस्तवपिंड कहीइ । ते महात्मानं सर्वथा वर्जिवउ । जेह भणी महात्माहुइ विहरवा ग्या, संबंध काढतां घणां घणा दोष ऊपजइ । तेह भणी ए दोष टालिवउ । एतलई इग्यारमउ संस्तवपिंड दोष कहिउं ॥७१॥ I हिव बारसमु विद्यापिंड, तेरमउ मंत्रपिंड, चउदमुं चूर्णपिंड - ए त्रिणि दोष सामटा वखाणइ छइ -
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy