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अनुसन्धान-७५(२)
काई जीवितव्यनउ उपाय प्रसाद करी' । तेहनी प्रार्थनाइ करी अनइ काई मोहि करी वली पाछु वलिउ। घरि आविउ । साते दहाडे श्री भरतेश्वर चक्रवर्त्तिनूं नवउं नाटक रचिउं । ते नाटक आपणा कुटुंबनइ सीखवी एक राजा आगलि जईनइ प्रकासिउ । ते राजा महात्मानी नाटककलाइं करी आपार रीझिउं । तीणइं राजाइ वस्त्राभरणालंकारादिक घणुउ द्रव्य दीधउ। ते लेइ पाछउं आपणइं नगरि आविउ। ते भरतेश्वर चक्रवर्तिनउं नवं नाटक कुमारपदवी थिकउ आरंभीनइ आदर्शभवनि आपणूं रूप जोतां, हाथनी मुद्रिका पडी देखी भरतेश्वरहुई भावना भावतां केवलज्ञान ऊपनुं तां लगइ ते नाटक प्रकाशउं । भरतेश्वरनी भावना देखी महात्माहुई वली वैराग्य ऊपनउ । पश्चात्ताप करतां भावना भावतां ते महात्माहुइ केवलज्ञान ऊपनऊं। पछइ घणा जीव प्रतिबूझवी मुक्तिं पुहतउ । इति माया ऊपरि आषाढभूतिनउ दृष्टांतः ॥
अथ लोभ ऊपरि केसरिकसाधुनक दृष्टांत जाणिवउ । ते किम् ? -
चंपानगरीइं एक महात्मा मासखमणनई पारणई नगरमाहि गिउ । तीणइं महात्माई इम चीतविउ, आज सिंहकेसरा मोदक जउ आविसिइ तउ पारj कीजिसिइ । इम चीतवीनइ नगरमाहि घणूंइ भमता तिणइ सिंहकेसरा मोदक न प्राम्या । तेह भणी ते महात्माहुइं ते मोदकनउ अध्यवसाय घणु वाधिउ । तीणिइं अध्यवसायिइं करी ते महात्मा सूनउ हूंतउ । लोभिई वाहिउ घणेरुं नगरिमाहि भमवा लागउ । फिरता फिरतां बि पहुर रात्रि थई । पुण लोभनइ अध्यवसायिई करी तीणई महात्माइ रात्रि कांई जाणी नही । रात्रिनइ समइ एकई श्रावकइं ते महात्मा विहरवानइ काजिइं फिरतउ दीठउ । तीणइं श्रावकिई मोदकनउ अध्यवसाय जाणी घरि तेडीनइं ते महात्माहुइं सिंहकेसरा मोदक विहराव्या । ते मोदक देखी महात्मा संतुष्ट थिउ, अनइ सावधानइ थिउ । तिवारउं तीणइं श्रावकिइं रात्रिनउ अवसर जणावानइ काजिइ महात्मा कहलि पूछिउं, 'भगवन् ! मई आज पुरिमढ कीधउ छइ, ते पूगउ ? अथवा नथी पूगंउ ?' ते वात सांभली महात्माई साम(व)धानपणइ उपयोग दीधउ। बि पुहर रात्रि जाणी महात्मा अपार मनिमाहि लाजिउ । श्रावकहुई कहिवा लागउ, 'तई अपार रूडइउं कीधउं, जे हुं तुम्हे जागविउं । मइ मोदकनइ लोभिई वाह्यां रात्रिइं जाती जाणी नही' । इम कही मोदक लेई महात्मा पाछउ वलिउ । वनिमाहि जई मोदक चूरी परिठवा लागउ। ते