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सप्टेम्बर - २०१८
मूयानी जिमणवार हुई । वली घेवर दिवराता देखी बीजा मासखमणनइ पारणइ ते महात्मा वली ते ब्राह्मणनइ घरि आविउं । बीजीवारइं काई दीधू नहीं । महात्मा रीसाविउ । तिमजि कांई कांई बोलतउ पाछउ वलिउ । वलतउ प्रोलीइ दीठउ । तीणइ जई ब्राह्मणनइ कहिउं, 'महात्मा एक रीसाविउ पाछउ वलिउ छइ । अनइं एह बार तीणइ वचन बोल्यां' । ते वात सांभली ते ब्राह्मण बीहतउ मनमाहि चीतविउं, रखे ए महात्मा रीसाविउं काई शापादिक देतउ हुइ । इम तीणई ब्राह्मणेइ बीहतइ हूंतइ महात्मा पाछउ वली घरि घेवर विहराविया । इम जे गृहस्थ बीहतउ हूंतउ दान दिइ, ते क्रोधपिंड दोष कहीइ । इति क्रोधोपरि घेवरसाधनउ दृष्टांतः ॥
हिव मान ऊपरि सेवतिका क्षुल्लनउ दृष्टांत जाणिवउ । ति किम् ? -
कोशला इस्यिइं नामइ देस छड् । तिहां गिरिपुष्पित नगरि । एकवार एक महोत्सवनउ दिहाडउ आविउ । तीणई दिहाडइ लोकनइ घणूं सेव जि वापरई । हिव तिहां महात्माइं चउमासूं रहिया छेइ । ते महात्माए पुण विहरवा गए हूंतइ सेव घणी विहरी । जिमवा लागा। जिमतां एकइ महात्माइ कहिउं, 'आज घणीइ सेव लाभइ छई । पुण जि को काल्हि सेव विहरी आणइ ते लब्धिवंत जाणइ ।' तिवारइ वली बीजइ महात्मा बोलिउ, 'लूखी सेवीइं सूं कीजइ ? जउ गुल पी(घी) सहित सेव जि आणइं ते लब्धिवंत अम्हे' । ए वात सांभली एकई बोलिई अहंकारि चडिउ । इम कहिउं 'काल्हि मइ घणी सेव गुल घी सहित आणवी' इम प्रतिज्ञा कीधी । बीजइ दिहाडउ ते चेलउ विहरवा गिउ । तिसिइं एक व्यवहारीयानइ घरि सेव घणी वापरती देखीनइ घरिमाहि गिउ । ते स्त्री कन्हलि सेव मागी । पुण तीणइ स्त्रीइं माग्यां पूठइ दीधी नही । तिवारई चेलई ते स्त्री प्रतइ कहिउ हूंतउ 'मां दीजउ आज ए सेव विहरउं' । तिवारई तीणइ स्त्रीइ वलतूं कहिउ, 'जइ तूं आज ए सेव विहरई, तओ माहरूं नांक जाइ' । तिवार पूठिउं ते चेलउ पाछउ वलिउ । ते स्त्रीनइ भर्त्तारि सभामाहि बइठउ । चेलउ ते कन्हलि ग्यिउ । तिहां जई पूछिउं, 'अमुकउ व्यवहारिउ कुण कहीइ ?' तिसिइ तेहे सभाने लोके कहिलं, 'तीणइ व्यवहारिइं ताहरउं स्यूं काज?' तिवारइ चेलइ कहिउं, 'हूं ते कन्हालि कांई वस्तु मागिसु' । ते वात सांभली तीणई व्यवहारी; लाजइं इम कहिउं, 'हूं ते व्यवहारीउ। चेला ! ताहरइ जि कांई जोईइ ते मूं कन्हलि