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अनुसन्धान-७५(२)
स्ठू (स्यूं) आणिसि? तइ काई सीझइ नही ।' - इम अनेरे महात्माए अपमानिउअवगणिउ हूंतउ अहंकारिइं करी जे महात्मा पिंड आणइ अथवा गृहस्थहुइ वखोडीनई ए मुंहुइं वखाणइ छइ तेह भणी एहहुई रुडी परिइं दान दिउं इम गृहस्थनई अहंकारि चडावी जे महात्मा आहार मागइ ते मानपिंड (दोष) कहीइ । एतलइ आठमउ मानपिंड कहिउं ॥६७॥
हिव नवमउ मायापिंड दोष अनइ दसमउ लोभपिंड ए बिन्हइ एकइ गाथाई वखाणइ छइ -
माया य विविहरूवं रूवं आहारकारणे कुणइ ।
गिहिस्समिमं निद्धाओ तो बहुं अडइ लोभेण ॥६८॥
माया० ॥ जे महात्मा मायाइ करी आहारनइ काजिइं नवा नवां रूप करइ, ते तेहे रूपे करी लोक इम जाणइ आगिलउ विहरी गिउ ते जउ, ए नवउ आविओ । एहुनई दान दीजइ । इम रूपे करी लोक प्रति जे महात्मा आहार मागई, ते मायापिंड कहीइ । एतलइ नवमुं मायापिंड दोष कहिउ । तथा स्निग्धसरस मोदकादिक आहार नवे नवें घरे जईइ तउ पामीइ, इम मनमाहि लोभ आणी जे महात्मा नगरमाहि घणूं घणूं भमइ ते लोभपिंड कहीइ । एतलइ दसमउ लोभपिंड [दोष] कहिओ । एतलइ ईणइ गाथा बिन्हइ दोष कह्या ॥६८॥
हिव क्रोधादिकपिंड ऊपरि च्यारि दृष्टांत जूजूया कहइ छई -
कोहे घेवरखवगो माणे सेवई खुडुओ नायं । माया आसाढभूई लोहे केसरइ साहुत्ति ॥६९॥
कोहे० ॥ क्रोधना पिंड ऊपरि घेवरनउ मागणहार महात्मानुं दृष्टांत जाणिवउ । ते किम् ? – हस्तिकल्पा नगरीइ ब्राह्मण एक मोटउ गृहस्थ वसइ । एकवार तेहनइ मूयानी जिमणवार हुई । तीणइ दिहाडइ घेवर दिवराता जाणीनइ महात्मा एक मासखमणनइ पारणइ आविउ । ते ब्राह्मणिनइ घरि घडीवार ऊभउ रहिउ, पुण कुणइ कांई दीधू नही । तेह भणी महात्मा रीसाविउ, नो सहिउ । 'अम्हरइ अनेथिई घणू देसिइ । ईहा आणीवारइ नही दीवू स्युं हुं ? बीजीवारइं दिइं लगो'। - इम रीसइ काई काई बोलतउ पाछउ वलिउ । अनेथि भिक्षा लेई पारगूं कीधउं । इम करतां केतलेएक दिहाडे ते ब्राह्मणनइ घरि बीजी वारइ वली