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सप्टेम्बर
२०१८
भेसज्ज' विज्ज' सूयण-मुवसामण वमणमाइ किरियं वा । आहारकारणेण वि दुविहि चिगिच्छं कुणइ मूढो ॥६६॥
भेसज्ज० ॥ चिकित्सा बिहुं प्रकारे हुइ । एक सूक्ष्म १। बीजी बादर २ अम्हारइ अमुक रोग हुतउ, अनइ अमुकई औषधि गुण हूउं । इम औषधनी सूची जणाविवउं करइ । तथा रोग प्रतिकार वैद्य कन्हलि पूछीइ । अम्हारे जिवारइ रोग हुइ तिवारई अमुका वैद्य कन्हलि पूछीइ । वैद्य रोगनउ मर्म सघलुं जाणइ, इम वैद्यनी सूचा करइ । ए ओषध वैद्यसूचारूप पहिली सूक्ष्म चिकित्सा कहीइ । तथा पित्तादिक रोग उपशमवानी औषधक्रिया करइ । अथवा वमन विरेचादिकनी औषधक्रिया प्रकासइ । ते बादरचिकित्सारूप बीजउ भांगउ कहीइ । वे (जे) महात्मा मूढ-अजाण हंतुं आहारमात्रनइ काजिई सूक्ष्म - बादररूप बिहुं प्रकारे चिकित्सापिंड दोष कहीइ । एतलइ छट्टउ चिकित्सापिंडदोष कहिउ |
हिव सातमउ क्रोधपिंड दोष वखाणइ छइ
विज्जा-तवप्पभावं निवाइपूअं बलं व से नाउं ।
'व कोहफलं दिति भया कोहपिंडो सो ॥६६॥
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हिव आठमउ मानपिंड दोष कहइ छइ
विज्जा० ॥ विद्या - मंत्रादिकनउ प्रभाव देखी, अथवा तपनउ प्रभाव देखी, अथवा राजादिकनी पूजा बहुमान देखी, अथवा शरीरनउ बल देखी, अथवा जे महात्मा कन्हलि तेजोलेश्यादिक लब्धि, अथवा कर्कशवचन सिद्ध्यादिक क्रोधन फल देखी ए महात्माहुइं दान दीजइ, रखे अम्हहुइ शापादिकि करी ए भस्म करइ । इम जे गृहस्थ बीहतउ हूंतुं भइ करी दान दिइ ते क्रोधपिंड दोष कही । एतल सातमउ क्रोधपिंडदोष कहिउ ।
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द्धिपसं [स]इओ परेण उच्छाहिओ अवमओ वा । गिहणोभिमाणकारी जं मग्गइ माणपिंडो सो ॥६७॥
द्धि० ॥ जे महात्मा इम जाणई, मू कन्हलि विहरवानी लब्धि छइ । मू-हुइ विहरणहार भणी वखाणइ छइ इम लब्धि करी अथवा प्रशंसाई करी गविउ हुंत । अथवा विहरवइ समर्थ अनइ जोइती वस्तू तेहइ जि आणई, अणेरा काई न आपेइ । इम अनेरे महात्माए उछाहिड गर्वि चडाविउ हूंतउ । अथवा तूं