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________________ अनुसन्धान-७५(२) भणिया उग्गमदोसा संपइ उप्पायणाइ ते वुच्छं। जेणज्ज कज्ज सज्जो करिज्ज पिंडट्ठमवि ते अ ॥५७॥ __ भणिआ० ॥ आहार नीपजतां जे दोष ऊपजइं ते उद्गम दोष कहीइं । ते सोल उद्गमदोष भणिया-कह्या । हिव आहार लेवानइ काजिइ जीणइ करी मांडइ भाव ऊपजावीइ ते उत्पादना दोष कहीइ । तेहना सोल दोष हुं बोलउं छउं । जे दोष महात्मा अनार्यकार्य-सावध व्यापार तेहनइ विषइ सज्ज हुतु पिंडमात्रआहारमात्रनइ काजिई करइ, ते सोल उत्पादना दोष हूं कहउं छउं ॥५७।। हिव पहिलूं तां ते सोलनां नाम कहइ छइ - धाई दुइ निमित्तं आजीव वणीमगे च (चि)गिच्छा य ।। कोहे माणे माया' लोभे य हवंति दस एए ॥५८॥ पहिलउ धात्रीपिंड दोष ।१। बीजउ दूतीपिंड दोष ।२। त्रीजउ निमित्तपिंड दोष ।३। चउथउ आजीवनापिंड दोष ।४। पांचमउ वनीमगपिंड दोष ।५। छ?उ चिकित्सापिंड दोष ।६। सातमउ क्रोधपिंड दोष ।७। आठमउ मानपिंडदोष ।८। नवमउ मायापिंड दोष ।९। दसमउ लोभपिंडदोष ।१०। ए दस दोष जाणिवा। पुविपच्छासंथव विज्जा मंते ३ य चुन्न" जोगे य५ । उप्पायणाइ दोसा सोलसमे मूलकम्मे अ६ ॥५९॥ पहिलू अथवा पछइ जे प्रसंसा कीजई ते संस्तवपिंड ।११। बारमउ विद्यापिंड दोष ।१२। तेरमउ मंत्रपिंड दोष ।१३। चऊदमुं चूर्णपिंडदोष ।१४। पनरमउ योगपिंड दोष ।१५। तथा सोलमउ मूलकर्मदोष ।१६। इम उत्पादनादोष जाणिवा ॥५९॥ हिव सोल दोष जूजूया वखाणतउ पहिलूं धात्रीपिंडदोष कहइ छइ - बालस्स खीर मज्जण मंडण कि की)लावणंकधाइत्तं । करिय कराविय वा जं लहइ जई धायपिंडो सो ॥६०॥ बालस्स० ॥ बालकहुई खीर-दूध धवरावानी चिंता तथा मज्जन-स्नान न्हवरावानी चिंता तथा मंडन-अलङ्करिवानी चिंता तथा कोलावण-रमाडवानी चिंता तथा अंकधाइऊं-उत्सङ्गि-खोलइ लेवउं इत्यादिक धाविनी परिइं आपण
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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