________________
सप्टेम्बर - २०१८
विणासइ-अयोग्य करइ । तेह भणी महात्माइं ए दस दोषना भांगा सर्वथा वर्जिवा ॥५४॥
सेसा विसोहिकोडी तदवयं जं जहिं जया पडिअं।
असढो पासइ तं चिअ तउ तया उद्धरे सम्मं ॥५५॥
सेसा० ॥ शेष-थाकता-बीजा उद्गम उत्पादनादिक दोषना भेद विसोधि कोटि कहीइ । अल्प दोष जाणिवा । तेह भणी तिनि बोल असूझता न कहिरावइ । जेह भणी ते दोष संबंधी आहारनउ कणइ जीणइ पात्रइ सूधउ आहार विहरिउ हुइ, तेहमाहि किवारइं आवी पडइ । तउ ते कण तिवारई जि ते आहारनउ कण अशठ निर्माय हुंतउ तत्काल ऊधरइ-अलगउ करइ । बीजउ सूधउ आहार जिम इ सम्यक्-रुडी परइं-विधिपूर्वक ते सदोष आहारनउ कण अलगउ करीनइ बीजउ वावरइ ।
हिव पाछला दस दोष अविसोधिकोटि जे कह्या ते जीणइ पात्रइ विहरइ, ते पात्रू असूझतउं थाइ । तेह भणी तेहहुई अविसोधिकोटि इसिउं नाम । अनइं बीजा दोष संबंधीया आहारनउ कण जि सूधा आहारमाहि पात्रइं आवी किवारइं एकठउ मिलइ, तउ ते कण अलगउ कीधा पूंठई बीजउ आहार अनइ पात्रउं असूझतई काई न थाई । तेह भणी ते सविहुं दोषहुई विसोधिकोटि इसिउं नाम । इस्युं भाव जाणिवउ ॥५५॥ .. हिव बीजा दोष टालिवा आश्री वली विशेष कहइ छइ -
तं चेव असंथरणे संथरणे सव्वमवि विगिचंति ।
दुल्लह दव्वे असढा तत्तिअमित्तं घिअवयंति ॥५६॥
तं चेव० ॥ हिव [अ]संथरण कहीइ अनिर्वाह छतइ महात्मा जेतलुं सदोष आहार हुइ, तेतलउ छांडइ-अलगउ करइ परिठवइ । अथवा संथरणेनिरवाहित छइ जउ ते आहार पाखइ निर्वाह करी सकतउ हुइ जे सूधा आहारमाहि आवी पडिउ हुइ ते सूधउं लइउ आहारपिंडि परिठवइ । अथवा दुर्लभ-दुःप्राय गुर्वादिकहुइ योग्य घृतादिक वस्तु काई विहरिउं हुई अनइ तेहमाहि सदोष आहारनउ कणइ आवी पडिउ हुइ, तउ तेतलउ कण ते परहुं करीनइ बीजउ आहार वावरइ।
एतलइ सोल उद्गमदोष कहिया ॥५६॥