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अनुसन्धान-७५ (२)
इम अनिसृष्ट दोष त्रिहुं प्रकारे हुइ । एतलई पनरम अनिसृष्ट दोष कहिओ ॥५१॥
हिव सोलमउ अध्यवपूरक दोष वखाणइ छइ
जावंतिअ' जइ' पासंडिअ ' - त्थेमो अरइ तंदुलेपज्जा । सद्धामूलारंभे तमेस अज्झोअरो तिविहा ॥५२॥
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सद्धामू० ॥ (जावंति० ॥ ) मूलि गृहस्थ काजिरं रंधनादिक आरंभ मांड हुइ । अनइ पछइ जिका भिक्षाचर आविसिइ तेह निमित्त १ । अथवा यति महात्मा निमित्त-२ । अथवा पाखंडी तापसादिक, तेह निमित्त - ३ । इम त्रिहुंनउ विकल्प मनमाहि चींतवीनइ वली ऊपरि अधिकेरो तंदुल ओरावइ । ते अज्झोअरइ नामिइ दोष इम त्रिहुं प्रकारे जाणिवउ । एतलई सोलमउ अध्यवपूरक दोष कहिउ। एतलइ सोल उद्गमदोष वखाण्या ॥५२॥
हिव ए सोल दोषमाहि केहा केहा भारी हुईं, ते वात कहइ छइ
इअ कम्मं उद्देसिअ मीस - ज्झोअरंतिमदुगं च' । आहारपूइबायर' पाहुडि अविसोहिकोडित्ति ॥५३॥
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इअ कम्म० ॥ पहिलं आधाकर्म दोष (१) अनइ ऊद्देसिकदोषना
छेहिला त्रिणि भांगा, अनइ मिश्रदोषना छेहिला बि भांगा, तथा अज्झोराना छेहिला बिभांगा तथा आहारपूतिकर्मनउ बादर भांगउ - ९ । अनइ दसमउ प्राभृत दोष । ए दसइ दोष अवसोधि कोटि कहीइ । सर्वथा असुध्यमान असूझता जाणिवा । एह भणी ए दस दोष सर्वथा महात्माइ टालिवा । जेह भणी सिद्धांतमाहि इसी वात कही छइ ॥५३॥
तिइ जुअं पत्तं पिहुं करीसनिछोडिअं कयतिकप्पं । कप्पइ जं तदवयावा सहस्सघाई विसलवव्व ॥५४॥
तीइजु० ॥ एहे दसे दोषे करी जे आहार दुष्ट हुइ ते आहार जीणई पात्रइ विहरीयइ; ते पानूइ करीस कहाइ राख तीणइ करी ऊगटीइं । अनइ ऊपरि वली त्रिणि काप दीजइ । तउ सूझइ । बीजी परिहं न सूझइ । जेह भणी ते आहारनउ कणइ सहस्रघाती विषलव सरीखउ । जिम सहस्रघाती विषनउ लवइ मनुष्य सहस्रंइहुइं विणासइ, तिम ते आहारनउ कणइ अनेरा सूधा आहारना सहस्रहुइ