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सप्टेम्बर - २०१८ जाणिवउ । इहाइ आत्मविराधना संजमविराधनादिक घणा दोष ऊपजइ । तेह भणी ए दोष महात्माइ वर्जिवउ । एतलइ तेरमउ मालापहृत दोष कहिओ ॥४९॥
चवदमो आच्छिद्य दोष वखाणइ छइ -
अस्सि(च्छि)दियमन्नेसिं बलावि जं दिति सामि, पहु, तेणा । तं अच्छिज्जं तिविहं, न कप्पए नणुमयं तेहिं ॥५०॥
अच्छि० ॥ अनेरा कन्हलि थिकुं बलात्कारि छिदिय कहीयं उदालीनइ जे वस्तु महात्मा प्रतिइं दिइ ते आछिद्य कहीइ । ते त्रिहं प्रकारे हुइ । ते किम् ? । ठाकुर सेवक कन्हलि थिकउ ऊदालीनइ दिइ १। तथा प्रभु कहीइ सेठि वाणउत्र कन्हलि थकउ बलात्कारिइं ऊदाली जे वस्तु महात्मा प्रतिइं दियइ २। तथा तेनचोर अनेरां लोक कन्हलि थिकउ ऊदाली महात्मा प्रतिइ दिइ ३। ते आच्छिद्य दोष कहीइ । इम स्वामि-१, प्रभु-२, चोर-३ आश्री विचारतां आछिद्य दोष त्रि प्रकारे जाणिवउ । तेहइ महात्मा प्रतइ न कल्पइ । तेह भणी ते वस्तुना धणीनी अनुमति तिहां नथी, एह भणी ए दोष वजिवउं । एतलइ चवदमउ आछिद्य दोष कहिउ ॥५०॥ हिव पनरमउ अनिसृष्ट दोष वखाणइ छइ -
अणिसिट्ठमदिन्नमणणुमयं च बहतल्लमेग जं दिज्जा। तं च तहा साधारण, चुल्लग, जह निसिटुंति(?) ॥५१॥
अणि० ॥ अनिसृष्ट कहीइ अणदीधउ अथवा अनुमं(म)त अणु(ण)जणाविउं हुइ । जे वस्तु घणे जणे मिली कांई एकठउं रांधिउं हुइ । ते माहिलुं एक जण बीजानी अनुमति पाखई जे महात्मा प्रतिइं दीजइ ते अनिसृष्ट दोष कहीइ । तेहइ त्रिहुं प्रकारे जाणिवउ । ते किम् ? । घणे जणे मिली जे भोजन एकठउं कराविउ हुंइ, ते साधारण कहीइ । ते भोजन सविहुंनी अनुमति पाखइ न सूझइ । तथा चुल्लग-राजानू भोजन । राजाई घणा सेवकहुई एकठउ-समुदायिइं भोजन मोकलियुं हुइ । ते सेवकमाहि कुणहु एक ते वस्तु माहिलं कांई एक महात्मा प्रतिइं दिइ । ते राजानी अनइ बीजा सेवकनी अनुमति पाखइ न कल्पइं । तथा कुड्ड कहीइ हाथीओ। तेहनी पिंड माहिलं आहार कुणंहू एक पुत्तारहुई भाव ऊपजइ । अनइं महात्माहुइं दिइ ते आहार हाथीआनी अनुमति पाखइ न सूझई ।