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सप्टेम्बर
पइ पिंड लेवानइ काजिइं बालकनी चिंता करइ । अथवा अनेरा पाहि करावइ । ते महात्मा इम करी आहार लिइ ते धात्रीपिंड कहीइ । एतलइ पहिलउ धात्रीपिंडदोष कहि ॥६०॥
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२०१८
हिव बीजउ दूतीपिंडदोष वखाणइ छइ
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कहिअ मिहो संदेसं पयडं छन्नं च सपरगामेसु ।
जं लहइ लिंगजीवी दूइपिंडो अणिट्ठफलो ॥ ६१॥
कहिअ० ॥ जे महात्मा मिथ - परस्परइं संदेसउ कहई । दूतीनी परइ अरानु परि परानु अरइ परस्परइ - माहोमाहि संदेसो कहइ । अथवा अनेरइ गामि जिहां विहरवा जातउ हुइ तिहां परस्परइं संदेसउ कही जं आहार लिइ ते दूतीपिंड कही । ते लिंगजीवी - वेषधारक महात्मा जाणिवउ । तेहइ पिंड महात्मा हुई अनिष्टफल-विरूओ-अवगुणहेतु जाणिवउ, तेह भणी वर्जिव । एतलइ बीजउं दूतीपिंड कही ं ॥६१॥
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हिव त्रीजउ निमित्तपिंडदोष वखाणइ छइ -
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जो पिंडाइ निमित्तं कहइ निमित्तं तिकालविसयं पि । लाभ(भा)लाभसुहासुह-जीविअमरणाइ सो पावो ॥६२॥
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जो पिंडा० ॥ जे महात्मा पिंडादि आहार वस्तु पात्रादिकनइ काजइ त्रिकाल अतीत १ | अनागत २। वर्तमान ३। कालविषईउं निमित्त कहइ - ज्ञान प्रकासइ। अथवा लाभ - अलाभ, सुख-असुख अथवा जीवितव्य - मरण आश्री काई निमित्त प्रकास । अथवा अनेरउं काई चमत्कार गृहस्थई हुई प्रकासी जं आहार लिइं, ते निमित्तपिंड कहीइ । तीण निमित्तिरं गृहस्थ घणां घणां पाप व्यापार करइं । तेह भणी तेहे पाप विरुउ महात्माइ सर्वथा वर्जिवउ । एतलई त्रीजउ निमित्तपिंड दोष कहिउ ||६२||
हिव चउथउ आजीवनृापिंड कहइ छइ
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जच्चाइधणाण पुरो तग्गुणमप्पं पि कहियं जं लहइ ।
सो जाई, कुल, गण, कम्म, स (सि)प्पा, आजीवणापिंडो ॥ ६३ ॥ जच्चाइ० ॥ जात्यादि - धनवंत, ब्राह्मण, क्षत्रियादिक उत्तम जातिवंत