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________________ सप्टेम्बर - २०१८ ५३ पल्लट्टि० ॥ जे गृहस्थ महात्माहुइं देवा योग्य वस्तु पालटइ अनेरी वस्तुस्यिउं दुर्गंध घृतादिक इस्यू पालटीनइ दिइ, ते परिवर्तित दोष कहीइ । ए दोष ऊपरि वाणीया बिहुनी बहिननउ दृष्टांत जाणवउ । ते किम्? । वसंतपुरि नगरि देवदत्त अनइं धनदत्त इस्यिई नामिइं वाणीया वसई । तेहे बिहुंए आपणी बहिनि माहोमाहि परणी । देवदत्तइ धनदत्तनी बहिनी बंधूमती इसिइ नामिइं परणी । तथा धनदत्तइ देवदत्तनी बहिनि लक्ष्मी इसिइ नामिइ परणी। इम करतां देवदत्तना लहुडा भाईहुई वैराग्य ऊपनउं । दीक्षा लीधी । विहार करिवा लागउ । केतलई एकइ कालिइं ते महात्मा आपणा भाई बहिनहुइ वंदाविवा आविउ । ते महात्मा देखी बहिनि अपार हर्षी । महात्मा विहरवा निमंत्रिउ । तिसिइ तीणइ बहिनिइ भाईनी भक्ति भणी आपणा घरनउ कोद्रवानुं कूर देखी देवदत्त रीसाविओ । आपणी कलत्रहुई रीस करिवा लागउ । तीणइ स्त्री रीस करि त्तां इम कहिउं । तुम्हारी बहिनि भाइहुइ विहरवा पालटी लेई गई। पछइ धणदत्त ए वात. जाणी आपणी स्त्रीहुइ रीस कीधी। अनेरा घर थकउ धान आणी जे महात्माहुई दीधउं । तीणइं करी तइ हूं लज्जाविउ। इम बिहुंनइ घरि कलह ऊपनउ । पछइ माहात्माइ ए वात जाणी । आपणा भाई बहिनि प्रतिबूझवी दीक्षा लिवराव्या । इम जे महात्माहुइं आहार पालटीनइं दीजइ, तिहाई घणाइ दोष ऊपजइं । तेह भणी महात्माइ ते दोष वजिवउ । एतलई दसमउ परावर्तित दोष कहिउ ॥४५॥ हिव इग्यारमउ अभ्याहृत दोष वखाणइ छइ - गिहिणो सपरग्गामाउ आणियं अभिहडं जईणट्ठा । तं बहुदोसं नेयं पायड-छन्नाइ बहुभेयं ॥४६॥ गिहिणा (णो०) ॥ जे गृहस्थ आपणा गाम थिकउ अथवाऽनेरा गाम थिकउ अथवा आपणा घर थिकउ जे वस्तु आणीनइ महात्मा प्रतिइ दीजइ ते अभ्याहृत करीइ । मार्गि आवतां जातां विराधना घणी हुइ । तथा केतलाइ प्रकट आणइं । केतलाई छानाई आणीनइ महात्माहुई दिइं । इम घणा भेद जाणिवा । ईहइ घणा दोष ऊपजइं । तेह भणी ए अभ्याहृत दोष कहिउ ॥४६॥ हिव ए अभ्याहृत केतलाएक थिकउ आणिउ सूझइ ?। ते वात कहइ छइ
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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