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अनुसन्धान-७५(२)
कुणहुं भक्तिवंत गृहस्थ आपणी मंख कहीइ - नटवादिक लाइं करी अनेरा लोक प्रतिइं रंजवी । ते कन्हलि द्रव्य लेई जं महात्मा प्रतिइ भोजन दियइ ते पर भावक्रीत जाणिवउ ।४। इम चिहुं भेदे क्रीतदोष जाणिवउ ॥४३॥
हिवइ नवमउ प्रामित्यदोष वखाणइ छइ -
समणट्ठा उच्छिदिअ जं देयं देइ तमिह पामिच्चं ।
तं दट्ठ जइ भइणी उद्धारिय तिल्लनाएणं ॥४४॥
समण० ॥ श्रमण-महात्मा निमित्त उछंदिय कहीइ ऊधारउ लेईनइ दान दियइ । आवतइ वरसिइं हूं बिमणूं आपिसु । इम कहीनइ जे वस्तु ऊधारइ लेई महात्मा प्रतिइं दिइ, ते प्रामित्यदोष कहीइ । तेहे दोष भारी । महात्माइ वर्जिवउं । हिव ए दोष ऊपरि महात्मानी बहिनिनउ दृष्टांत जाणिवउ । ते किम् ?।
___ एकई नगरि एक कौटंबिक वसइ । तीणइ कौटंबिकई वैराग्यइ दीक्षा लीधी । पछी तेहनूं कुटुंब सगलूं विणठउं सांभलिउं । एक बिहिनि ऊगरी छइ । ते वात जाणी ते महात्मा आपणी बहिननइ वंदाविवा आविउ । ते भाई महात्मा देखी बहिन अपार हर्षी । हिव रखे मूंनि निमित्त नवउं कांई करइ, इम महात्माई बहिननि वारी । पुण तुहइ तीणई बहिनि आवतइ वरसि हुं बिमणू आपिसु इम ऊधारउ तेल लेई नइ आपणा भाई महात्माहुइं विहराविठं । महात्मा वंदावी ग्यिउ। पछइ तीणइ स्त्रीइं बीजइ वरिसि निर्धनपणइ तेतलइ बिमणूं आपी न सकिउं । इम त्रीजइ वरिसि वली बिमणूं थिउं । इम मउडइ मउडइ कूणउ घणउ वाधिउं । तिणइ स्त्रीइं दारिद्र्य करी आपी सकिउं नही । तेह भणी ते स्त्री व्यवहारिआनइ घरि दासी थईनइं रही । पछइ ते वात तीणइं महात्माइं जाणीनइ महात्मा वली तिहां आविउ । आपणी बहिनिनउ स्वरूप जाणिउं । ते व्यवहारिउ प्रतिबूझवी आपणी बहिनि छोडावीनइ दीक्षा लिवरावी । ईणइं दृष्टांतिइं प्रामित्यइ दोष भारी जाणीनइ महात्माई वर्जिवउ । एतलइ नवमउ प्रामित्य दोष कहिउ ॥४४॥
हिव दसमउ परावर्तित दोष वखाणइ छइ -
पल्लट्टिअं जं दव्वं तदन्नदव्वेहिं देइ साहूणं । तं परिअट्टिअ मिच्छं वणि(ग)दुगभइणीहि दिटुंतो ॥४५॥