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चुल्लखाइ सद्वाणं, खीराइ परंपरं परंघया इयरं, I दव्व ठिई जावचिरं अचिरंति घरंतरं कप्पं ॥ ३९ ॥
अनुसन्धान- ७५ (२)
चुलु० ॥ जीणइ चूल्हइ अथवा भाजनि धान्यादिक राधिउं हुई, तिणि जि स्थानकि जि काई महात्मा निमित्त स्थापइ - राखी मूकइ; ते स्वस्थान कहीइं १ । अथवा ते स्थानक थिकइ लेईनइ अनेरइ स्थानकि राखइ ति परंपरस्थापना
२ । अनइ जे घृतादिकनइ काजिरं दूध दही प्रमुख महात्मानिमित्त राखइ; ते अनंतर स्थापना कहीइए३ । तथा घृत पक्वान्नादिक जे वस्तु घणुं काल राखी हूंती कांइ विणस नही । ते वस्तु महात्मा निमित्त राखइ; ते चिरस्थापना कहीइ४ । इम इ त्रिहुं, घरमाहि महात्मा आव्या देखी विहरवानइ काजिइ जे वस्तु हाथि लेई गृहस्थ ऊभउ रहइ ते अचिर स्थापना कहीइ । ते अचिरस्थापना महात्माहुइ कल्पइ । बीजी न कल्पइ । जेह भणी स्थापनाइ घणा जीवनी विराधना हुइ तेह भणी तेहे दोष मोटर महात्माई टालिवड ॥ ३९॥
हिव छउ प्राभृतिका दोष वखाणइ छइ
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बायर सुहुमस्सक्कण,- मोसक्कण, मिहडुहेहपाहुडिया | पुरउकरण उस्सक्कण, - मोसक्कणमारउकरणं ॥ ४०॥
बार० ॥ प्राभृतिका बिहुं प्रकारि हुइ । ते किम् ? बादर - १ | बीजउ सूक्ष्म-२ । गृहस्थ बादर-मोटक अथवा सूक्ष्म-नाहानु जिमणवारादिक आरंभ करणहार हुइ ते आरंभ महात्मानिमित्त उस्सक्कण कहीइ । बिहु त्रिहुं दहाडे मोडेरुउं करइ । अथवा उस्सक्कण कहीइ अरहुं - वहिलेरडं करइ । इम प्राभृतिकाना विभेद जाणिवा । कुणहूं गृहस्थ काईं नाहनुं अथवा मोटउं साखडउ करणहार हुइ । अनई ते महात्मा आवणहार जाणी मउडेरउं करइ । ते उस्सक्कण कहीइ । तथा महात्मा आव्या देखी ज जिमणवारादिक आरंभ विहलउ करइ ते उस्सक्कण कही । इम जे महात्मानिमित्ति गृहस्थ आरंभ आघउ पाछउ करइ ते महात्मानउ दोष लागइ । तेह भणी एहइ दोष गाढउ भारी भणी महात्मानइ टालिवउ । एतलइ छट्ठउ प्राभृतदोष कहिउ ||४०||
हिव सातमउ दोष 'प्रादुष्करण' वखाणइ छइ