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अनुसन्धान-७५ (२)
उद्देसि० ॥ औद्देसिकपिंड बिहुं प्रकारे हुइ । एक- ओघ - सामान्यई उद्देश १। बीजउ विभागिइं विशेषिरं जे उद्देश २ |
हिव ते बिहुं भांगामाहि पहिलुं सामान्य वखाणइ छइ - पहिलूं गृहस्थ आपण काजिइ पाकादिक आरंभ मांडइ । अनइं अन्नपाक नीपजतां विचालाई सामान्यइ भिक्षा देवानउ विकल्प चींतवइ, ए आहारमाहि केतलूइं माहरइ काजि आविसिइं । अनइं एह माहिल कैतलू एक जि को भिक्षाचर आविसिइ तेहुइं देवा हुसिइ । इम जे गृहस्थ सामान्यइ भिक्षाचरहुई देवानउ विकल्प चींतवइं ते 'ओघऊद्देसिक' पिंड कहीइं १ । ए पहिलुं भांगउ जाणिव ॥२८॥
हिव उद्देसिकपिंडनउ विभागरूप बीजओ भांगउ वखाणइ छई
बारसविहं विभागे चहुद्दिवं१, कडं२ च कम्मं३ च । उद्देस, समुद्देसा, देस, माएस, एणं ॥ २९ ॥
बारस० || विभागिइ विशेषई जे औद्देशिकपिंड कहीइ ते बार भेद हुइ । ते किम् ? | पहिलूं उद्दिष्ट' कृत' कर्म - ए त्रिणि भांगा मूलगा जाणिवा । हिव ए तिन्निइ भांगांइ वली चिहुं भेदे हुइ । ते किम् ? उद्देश१ समुद्देसर आदेश३ समादेश४ । हे चिहुं भेदे पाछिलुं एकेकउ भांगउ चिहुं प्रकारे कीजइ । इम औद्देशिकनइ बीजउ भांगउ बार भेद जाणिवउ ॥२९॥
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हिव ए वार भांगा जूजूया वखाणइ छइ
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जावंतियमुद्देसं, पासंडिणं भवे समुद्देसं ।
समणाणं आएसं निग्गंथाणं समाएसं ॥३०॥
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जावंति० ॥ आपणाइ काजि पाकादि आरंभ करतां गृहस्थनइ मनि जि को याचक आविसिइ, तेहहुइ दीजिसि इस्यियुं विकल्प ऊपजइ ते 'उद्देशक' कही - १ | अनइ जे पाखंडीया - परिव्राजकादिकनउ विकल्प जे मनमाहि चींतवई, ते 'समुद्देसपिंड' कहीइ - २ । तथा श्रमण - बौद्ध-तापसादिकनउ जे विकल्प चींतवइ ते 'आदेशपिंड' कहीइ ३ । तथा निर्ग्रथ चारित्रीयाहुइ देवानउ विकल्प चींतवइ ते 'समादेशपिंड' कहीइ - ४ । एतलइ उद्देशादिक च्यारिइ भांगा वखाण्या । हिव मूलगा उद्दिष्ट - १, कृत - २, कर्म - ३ ए त्रिणि भांगां कह्या ते वखाणइ छइ
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