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________________ ४४ अनुसन्धान-७५(२) थोवंति न पुढे न कहियं च, गूढेहिं नायरोव्व कओ। इअ छलिउ वि न लग्गइ, सुओवउत्तो असढभावो ॥२४॥ थोवं० ॥ हिव किवारइं महात्माइं थोडउ आहार जाणीनइ कांई पूछई नही । अनइ गृहस्थई पुण व्यगतउं कहिउं नही । तथा गूढपणइं-धूर्तपणई विहरवानउ आदर गाढउ न कीधउं । ईय छपइम आधाकर्मनइ देणहारिइं महात्मा छलिउइ हूतउ पाप न बंधाई । आधाकर्मनू पाप तेहुइ न लागई। जेह भणी ते महात्मा सूझता आहारनइ विषइ सिद्धांतनइ उपयोगिइं जाणिवई करी गाढउ सावधान छइ । अनइ अशठभाव-निर्मल चित्त छइ । एतइ दोष टालिवा ऊपरि तेहनउं मन गाढउं चोखउं छइ । तेह भणी ते पाप न लागइ ॥२४॥ हिव आधाकर्म लेतउ महात्मा किम सूझइ ? इस्युं नवमुं द्वार कहइ छइ आहाकम्मपरिणउ बज्झइ लिंगिव्व सुद्धभोई वि। सुद्धं गवेसमाणो, सुज्झइ, खवगुव्व कम्मे वि ॥२५॥ आहाक० ॥ जे महात्मानिइं आधाकर्म टालिवा ऊपरि मन काई न हुई, ते महात्मा सूधउ आहार लेतउइ हुतुं आधाकर्मनइ पापइ-बंधाइ । लिंगी-वेषधारकनी परिइ । किवारइ सूझतउई आहार लिइं तेहइ आधाकर्म- पाप लागई। तथा जे महात्मा सूझता आहार ऊपरि घणी खप करइ, अनइं तेहनूं मन एकांतिइं सूझता जि लेवा ऊपरि छइ ते महात्मा आधाकर्मनइ पापइ न बंधाइ । क्षपक-शुद्ध महात्मा जिनकल्पीनी परइं आधाकर्म लेतउ सूधउ जि कहीइ ॥२६॥ वली एहजि वात आश्री शिष्य पूछइ - नण मुणिणां ज न कयं, न कारिअंनाऽणुमोइअंतं से । गिहिणो कडमाययउ, तिगरणसुद्धस्स को दोसो ? ॥२६॥(२७॥) ननु० ॥ हे भगवन् ! ते आधाकर्मी आहार महात्माइं कांई कीधउ नथी। १. वेषधारकसाधुवत् । तत्कथा-कश्चित्साधुरेकस्याऽपि श्रावकस्य गृहे संघभोज्यं श्रुत्वा तीरग्गाइ स लोल(:) तत्र जगाम । तद्भिक्षार्थं श्रावकप्रेरिता पत्नी सर्वमग्रे दत्तमित्युवाच । ततो मम भक्तादपि देहीत्युक्त्वा दापितसंपूर्णमिष्टान्नः संघधिया विहत्य बुभुजे। स चैवमशुद्धपरिणामादशुद्धः ॥ २. तत्कथेयम् - यथा कस्मिंश्चिद्गच्छे साधुरेको निरीहस्तपस्वी । मासक्षपणान्ते पारणार्थ
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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