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अनुसन्धान-७५(२)
अनाचार दोष हुइ । इम बीजाइ दोष ऊपजइं । पुण ते सोहिला भणी नथी कहीता। इस्युं जाणिवउ ।।१८।।
भुंजइ आहाकम्मं सम्मं न य जो पडिक्कमइ लुद्धो।
सव्वजिणाणा विसु(मु)हस्स, तस्स आराहणा नत्थि ॥१९॥
[भुंजइ० ॥] जे महात्मा विचरिइं आधाकर्मी आहार जिमइ । अनइ जिमीनइ पछइ जउ गुरुकन्हलि आलोइ नही । लुब्ध-लोभीओ-आहारलंपट हूंतउ। प्रायश्चित्त न पडिवज्जइ । ते सर्व वीतरागनी आज्ञाई करी विमुख-रहित महात्माहुई आरांधिवउ नथी ते महात्मा आराधक न कहीइ । किंतु, विराधक जि जाणिवउ ॥१९॥ हिव ते आधाकर्म देवानउ प्रकाररूप छठउ द्वार कहइ छइ –
जइणो चरणविघाइत्ति, दाणमेअस्स' नत्थि आहेण । बीअपए जइ कत्थवि, पत्तविसेसेण हुज्ज जउ ॥२०॥
जइणो० ॥ महात्मानइ चारित्रनइ विघात-विणास करइ । तेह भणी ते आधाकर्मनउं देवउं उघतउ-मूलगई भांगइ विवेकीया श्रावकहुइ निषेधिउं छइं । तथा बीजइ पदि-अपवादपदि किवारइ अनिर्वाहादिक कारणि छतइ, अथवा ओषधादिक कारण विशेषिइं, अथवा पात्रनइ विशेषिइं, अथवा ए आधाकर्मनउ देवउं-इम कहिउं छइ एतलई अतिमोटइ कारणविशेषइ महात्माहुई आधाकर्म कोइ निषेधिउंइ नथी । लेवउ कहिउं छइ ॥२०॥
जेह भणी सिद्धांतमाहि इसी वात कहइ छइ -
संथरणम्मि असुद्धं, दुण्हंवि गिण्हेंतु दितियाणऽहिअं।
आउरदिलुतेणं, तं चेव हिअं असंथरणे ॥२१॥ संथरणं० ॥ शुद्धान्ननइ लाभिं छतइ, निर्वाह छतइ ए आधाकर्मी आहार
१. पंचमयस्स पंचमुद्देसे भगवत्याम् - कहं णं भंते! जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं करेंति? ।
गो० ! तिहिं ठाणेहिं पाणे अतिवत्तित्ता मुसं वइत्ता तहारूवं समणं वा माहणं वा अफासुएणं अणेसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाहेत्ता । एवं खलु अप्पाउयत्ताए कम्मं पकरेंत्ति । तथाविधस्वभावं भक्ति-दानोचितपात्रमित्यर्थः ।