SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२ अनुसन्धान-७५(२) अनाचार दोष हुइ । इम बीजाइ दोष ऊपजइं । पुण ते सोहिला भणी नथी कहीता। इस्युं जाणिवउ ।।१८।। भुंजइ आहाकम्मं सम्मं न य जो पडिक्कमइ लुद्धो। सव्वजिणाणा विसु(मु)हस्स, तस्स आराहणा नत्थि ॥१९॥ [भुंजइ० ॥] जे महात्मा विचरिइं आधाकर्मी आहार जिमइ । अनइ जिमीनइ पछइ जउ गुरुकन्हलि आलोइ नही । लुब्ध-लोभीओ-आहारलंपट हूंतउ। प्रायश्चित्त न पडिवज्जइ । ते सर्व वीतरागनी आज्ञाई करी विमुख-रहित महात्माहुई आरांधिवउ नथी ते महात्मा आराधक न कहीइ । किंतु, विराधक जि जाणिवउ ॥१९॥ हिव ते आधाकर्म देवानउ प्रकाररूप छठउ द्वार कहइ छइ – जइणो चरणविघाइत्ति, दाणमेअस्स' नत्थि आहेण । बीअपए जइ कत्थवि, पत्तविसेसेण हुज्ज जउ ॥२०॥ जइणो० ॥ महात्मानइ चारित्रनइ विघात-विणास करइ । तेह भणी ते आधाकर्मनउं देवउं उघतउ-मूलगई भांगइ विवेकीया श्रावकहुइ निषेधिउं छइं । तथा बीजइ पदि-अपवादपदि किवारइ अनिर्वाहादिक कारणि छतइ, अथवा ओषधादिक कारण विशेषिइं, अथवा पात्रनइ विशेषिइं, अथवा ए आधाकर्मनउ देवउं-इम कहिउं छइ एतलई अतिमोटइ कारणविशेषइ महात्माहुई आधाकर्म कोइ निषेधिउंइ नथी । लेवउ कहिउं छइ ॥२०॥ जेह भणी सिद्धांतमाहि इसी वात कहइ छइ - संथरणम्मि असुद्धं, दुण्हंवि गिण्हेंतु दितियाणऽहिअं। आउरदिलुतेणं, तं चेव हिअं असंथरणे ॥२१॥ संथरणं० ॥ शुद्धान्ननइ लाभिं छतइ, निर्वाह छतइ ए आधाकर्मी आहार १. पंचमयस्स पंचमुद्देसे भगवत्याम् - कहं णं भंते! जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं करेंति? । गो० ! तिहिं ठाणेहिं पाणे अतिवत्तित्ता मुसं वइत्ता तहारूवं समणं वा माहणं वा अफासुएणं अणेसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाहेत्ता । एवं खलु अप्पाउयत्ताए कम्मं पकरेंत्ति । तथाविधस्वभावं भक्ति-दानोचितपात्रमित्यर्थः ।
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy