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________________ २८ अनुसन्धान-७५(२) ध्वजावतार, मानिनीमानज्वरवैद्य, धनुर्विद्याहितअर्जुन, अकीतिलंकाहनूमंत, सेवकजनवत्सल, विवेकनारायण, परनारीसहोदर, अखंडितप्रताप, वेलाऽवनिनिखातकीर्तिस्तंभ, पराक्रमि करी भीम, दानि कर्णनरेंद्र, सत्यवाचा युधिष्ठिरः, चातुर्यतुरंगमवाहियालि, याचककल्पवृक्ष, दुष्टनिग्राहकु, साधुपालक, राजसमान, चक्रवर्ति, नीतिनिधान, साहसिकस्थान, जेहिं जेहिं प्रति प्रसन्नु तिहां तिहां दातारू, जिहां जिहां कुपित तिहां तिहां कृतांतावतार, दोषई दरिद्र, गुणद्रविणईश्वर, परदूषणान्वेषणजात्यंध, तत्त्वविलोकनसहस्राक्षः ॥५२॥ राजावर्णनं ॥ अथ राज्ञी - जिसी हमकामलोचन(?), पसइ प्रमाणलोचना, कलकंठ, कुंडलाभरणकणयमंडित, एरावणकरिकुंभविभ्रमकारि, मदनमुद्रावतारि, विततहारि ॥ __ केतला इसउं भणइ : धर्माधर्म पदार्थ नथी । ते किम बूझवीइ ? । तउ किसिउ निमित्त एक राय एक रांक, एकि ईश्वर एकि दरिद्र, एक पंडित बीजा मूर्खः, एकि नायक बीजा पायक, एकि सुखी बीजा दुखी, एकि प्रचुर परिवारि बीजा दुर्भग, एक सावरण बीजा निरावरण, एक सुचक्षु बीजा विगतचक्षु, एक सुवर्णस्थालिभोजी बीजा खपरभोजी, एकि सुवर्णमयसिंहासनोपविष्ट बीजा भूमितलोपविष्ट, एक उत्तम जाति बीजा नीच जाति, एक प्रशस्य कुलि बीजा कुच्छितु कुलि, एक लक्षभरि बीजा उदरंभरि, एकि सुरूप बीजा कुरूप, इसउ सुकृत-दुःकृततणउ विशेष प्रकट दीसइ छइ ॥५३॥ यथा सूर्यं विना दिवसं न, पुण्यं विना सुखं न, पुत्रं विना कुलं न, गुरुपदेशं विना विद्या न, हृदयशुद्धि विना धर्मो न, धनं विना प्रभुत्वं न, दानं विना कीतिर्न, भोजनं विना तृप्तिन, श्रीवीतरागं विना मुक्तिर्न, साहसं विना सिद्धिर्न, जलं विना शुद्धिर्न, उद्यम विना धनं न, कुल स्त्री विना गृहं न, वृष्टिं विना सुभिक्षं नहि ॥५५(५४)॥ यदि मेघस्य धारासंख्या भवति, गगने तारकसंख्या भवति, अवनि रेणुकणसंख्या भवति, समुद्रे मत्स्यसंख्या भवति, मेरुगिरौ सुवर्णसंख्या भवति, श्रीसर्वज्ञे गुणसंख्या न, मातरि स्नेहसंख्या न ॥ इति उपाख्यान ॥
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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