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सप्टेम्बर २०१८
जइ थोडउं तोइ सुपात्रदान || २४ (२३) ॥
ठीकरी कारणि कुण हेमकुंभ फोडइ, निःकारण कुण आजन्मस्नेह त्रोडइ, कामधेणु कुण ढीली मेल्हइ, चिंतामणि हाथि पेलइ, कल्पद्रुमकु उन्मूली लंषेइ, लक्ष्मी आवती कुण राखइ, जिणधर्म लिही कुण प्रमादु सेवइ || २५ (२४) |
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विरह त्रोडती, वलय मोडती, आभरण भंजति, वस्त्र गांजती, किंकणी कलाप छोडती, मस्तक फोडती, वक्षस्थल ताडती, कुंतल कलाप रोलती, पृथ्वी लोटती, सकज्जलि बाष्पांजलि कुंचक सिंचती, दीनु बोलती, सखीजन अपमानती, पाणीरहित माछली जिम टलवलती, विकल थाती, क्षणि म्हझइ रूरुइ, तसु तणउं तणुसंतापइं चंदणु मृणालन ( ना?) ल मेल्हइ, झाल्य चंद्रज्योत्स्ना ज्वलइ, चंद्रोपल बलइ, हारु भावइ अंगारु, कदलीहर मान (नु) जमघर, जे सीतलोपचार ते जि भइ विकार, इणि प्रकारि प्रबल ज्वलिता स्नेहपटलु एवंविध विरहानल नीपजइ 1128 (24)11
द्राक्षातणी आकांक्षा किसिउं महूडे फीटइ, शर्करा श्रद्धा किं गुलि पूजइ, अमृतकाजि किं कांजी पीजइ, कस्तूरी वानउ किं काजल कीजइ, इंद्रनीलमणि काजि किं काचु लीजइ, तथा वल्लभ माणुसतणउ ऊमाहउ न ईतरि पूजइ ॥२७(२६)॥
छेदरी छासि केतलउ पाणी खमइ, पातली छाया केतलउ आतपु शमइ, कायर केतलउं रणांगणि झूझइ, निरक्खर केतलउं कहिउं बूड (झ) इ, पाछिलउ मेघ के. (केतलउं) गाजइ, तथा कारमउ नेह केतलउं छाजइ ॥२८ (२७)॥ अथ कलिकाल
सपापु लोक, तुच्छू नरेन्द्र, सकारण स्नेह, विश्वासघातक मित्र, दुश्चारिणी कलत्र, अर्थलुब्ध पुत्र, स्वापक्षीया बांधव, असन्तुष्ट मित्र, पाखंडी यति, प्रतापहीन पुरुष, अपूज्य देव, अमेध्यरत सुरभी, देव-गुरु प्रतिं अभावु, अल्प वृष्टि, अविवेकी राजपुत्र, कुलवधू निर्लज्ज, अहंकारी मूर्ख, विद्वांस दरिद्र, वृद्ध कामुक, प्रजा कष्टित, मुहरु रवाई करु(?) लोकु, सहू एकाकारु ॥२९(२८)॥
राजवर्णनं
आदित्य जिम प्रतापी, सिंह जिम सूरु, हंस जिम उभयपक्षविशुद्ध, हारु