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सप्टेम्बर - २०१८
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आव बंधी बाजिंद ओक ही भालसै, लोही हाड अर मांस लपेटे खालसैं चूपरे तेल फूलेलके आ देह चांमकी, मरदे गरद होई जोई दुहाई रामकी ॥२०॥ खीर खांड अर घीव जीवको देत हे, पान फूलकी वास रेण दिन लेत हे उर लावे जु कुंज सुणै उन रोज रे, गेंवर गयें गडंत चरन नहीं खोज रे ॥२१॥ कहां ते विक्रम भोज तपंतै तेज रे, कहां चमर ढलंते शिष सुखासन सेज रे विनउ मिंदर माल कैरोडी लखवे, लेटे जाई मसांण विठाओ खकवे ॥२२॥ जुं रा जीवके ख्याल रहे क्युं जगमें, बाजिंद वटाउ लोग पनही पगमें राजा राणा राय छत्रपति लोई रे, जोगी जंगम सेष देख दिन दोई रे ॥२३।। परगट बोलै कुछ न करही सरंम रे, माल मुलक बाजिंद कोन की हरम रे मरण मांई नहीं फेर जीवणकी बात हे, हाथी घोरे उंट कूटहे जात हे ॥२४॥ परे कालको जाल जीव कुण कामको, तजिके माया मोह रटै क्युं न रामको मोटा मुदगर हाथ साथ जमदूत हे, तात मात भयाबंध कोणको सूत हे ।।२५।। स्वारथ अपने काज मिले दिन दोई रे, और निवहे वीर आण मन कोई रे पंखी लागे वाट सूक गओ नीर रे, धूल उडे बाजिंद तालकी तीर रे ॥२६॥ सायर सूके जबही कंवल कुमलाईगे, हंस वटाउ वीर सो तो उडी जाईगे साहिब अपणो समरी विलंब क्यों कीजिये, निहचै मरिवो मित्र कोटि जौ जी जीये ॥२७॥ में जु कह्यो बाजिंद वेर दश वीसरे करहै खंड विखंड हाथ पग शिष रे जरा बुरी बलाई न छोडे जीवको, रू टमूरि मत जाई पकर रहे पीवको ॥२८॥ काल फिरत हे माल रेंन दिन लोई रे, हणे रंक अर राव गणे नहीं कोई रे अहै दुनिया बाजिंद बाटकी डूब हे, पांणी पहेलो पालि बंधै तो खूब हे ॥२९॥ सूआ राम संभाल कछै ठा ताकमें, दिवस च्यारका रंग मिलेगा खाकमें सांई वेग संभालिकै जमसुं राडि है, जमके हाथ गिलोल पडघा पाडि है ॥३०॥
॥ उपदेशको अंग ॥ दे कछु दाहिणे हाथ नाथ के नाम रे, विलै न जैहै वीर रहैगो ठांम रे सफल सोई बाजिंद समरीयै पीवकों, आडे वांकी बेर आयहै जीवकों ॥३१॥ खैर सरीखी खूबन दूजी वस्त हे, मेले वासण मांही कहा मकेसूज हे । तू जाणे नहीं जाय रहेगी ठाम रे, माया दे बाजिद धणीके नाम रे ॥३२॥
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