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________________ २७६ अनुसन्धान-७५(२) रट्यो दिवस अरु रेण आपणे पीवको, माया मोह जंजालन मेलउ जीवको कुटंव बंध घर धंध नी कोउ तेर हे, बादर केसी छांह जात नहीं बेर हे ॥७॥ घडी घडी घरीयाल पुकार कहत हे, बहोत गइ हे आव अलप ही रहत हे सोवे कहां अचेत जागी जप पीव रे, चले आज के कालि वटाउ जीव रे ॥८॥ जल अंजलिको जात कहो कहा वैर हे, देखो सोच विचार वात ईहि फेर हे, मेंज कह्यो दस वेर खेल हे घाव री, जीते भावै हारी रजा अब राव री ॥९॥ परतखि देखु हे नेण श्रवणउं सुणत हे, उसर बोयो बीज कहांसु लुणत हे चरण कमल चित देह नेह तजी ओर सुं, तोरे वेणै न वीर श्याम शिरमोरसुं ॥१०॥ तणतें हरका होई कहा जग जी जीयै, तजी वा सुरसरी नीर कूप जल पीजिये करी वाही को याद आस तजी औरकी, जिण बाजिंद विचार कहां हे ठौरकी ॥११॥ काल छांडी गही मूल मांन शीख मोहे रे, विना रामके नाम भला नहीं तोहे रे जो हमको न पत्याय बोल कहो गांममें, जप तप तिरथ व्रत सबें ओक नांममें ॥१२॥ गीत कवित गुण छंद प्रबंध खाणीयै, तिणमें हरिको नाम निरंतर आणीयै जीण बाजिंद विचित्र डरावै कोण सों, सब सालणको स्वाद लग्यो ओकलोंण सों ॥१३॥ अबध नांउ पाषांण ठिो हे लोह रे, राम कहत कलमांज न बूडो कोह रे क्रमसो केतीक बात विलहे जायगे, हसति के असवार न कूकर खायगे ॥१४॥ ज्यूं ज्यूं कूड कपट हो गोविंद गाईये, राम नाम के लेत पाप कहां पाईये मन वच क्रम बाजिंद कहे यूं लागी रे, पकरी जांण अजाण ई फावे आगी रे ॥१५॥ ओक ही नाम अनंत काउ जो लिजिये, जनम जनमके पाप चनौति दीजिये। रंच कंचन गि अग्नि आन धरी अंबहे, कोवी तरी कपास जायै जर बरहे ॥१६॥ ॥कालको अंग ॥ अति हि काचो काम लखे नहीं कोय रे, आये बैठे उठ जाय भया सब लोय रे पवन ही तें हल वल्ल रंक कहा रावकी, गुडी उडी असमान शक्तिया वावकी ॥१७॥ कीये बोहोत उपाय करूं जो जी जीये, माया के रस धाय रैण दिन पीजिये परतखी देखउ आप ओरउ कहत हे, काचे वासण वीर नीर कहां रहत हे ॥१८॥ मुख उतरके दांत गओ है लोई रे, सिरउ उपर केस रहे कहुं कोई रे लाठी काठी पकरी धरण पग मांडही, या तनकी नर आस अजूं नहीं छोडही ॥१९॥
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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