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सप्टेम्बर २०१८
क्षणिक क्षणभंगुर जीवननो भ्रामक आनन्द होय छे. तो बीजी तरफ अनन्त अश्वर्यवान परमात्मा साथै अनुसन्धान केळवी सदैव परमानन्दमां लीन थई जवानी झंखना. पण... ज्यां सुधी मानवी साचां अने खोटां सुख वच्चेनो सूक्ष्म भेद जाणी शकतो नथी त्यां सुधी आम तेम अथडाया करे छे. संसारना दरियाकिनारे भटक्या करे छे. ओ सामे पार क्यांथी पहोंची शके ? तृष्णा, मोह, भोगविलास अने आसक्तिओमांथी मुक्त थई जवं ओ सहेलुं नथी. ओ तो गुरुनी कृपा अने साचा संतनी शीखामण मळी होय तो ज शक्य बने. अने अ ज कारणे आपणा संतोओ जगतना अनित्य कठोर वास्तविकताभर्या मानव जीवननी साची ओळख करावता रहीने परमात्मा प्रत्ये अपार श्रद्धा अने आध्यात्मिक प्रेम प्रगटाववा भारे मथामण करी छे. पोतानी वाणीमां मानवजीवनमां व्यापी रहेला ठाठमाठ, गर्व, पाखंडी आचारो, नात-जातना वाडा, अत्याचारो, अने दम्भ जेवां अनिष्टो प्रत्ये व्यंग दर्शावी, पापनी अने अधर्मनी अन्ते शी दशा थाय छे ओना द्रष्टान्तो आपी संतोओ नामस्मरणना महिमानुं वर्णन कर्तुं छे.
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अथ बाजिंद विलास / बाजिंद शतक
(अडिल चन्द्रायणा)
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॥ अथ समरणको अंग ॥
और कौर सब छांडि धणीकों ध्याइओ, मुक्ति करै पल मांही नभै जल ल्याईये बैस दासके पास हाथ ले जपनी, चालत हे कही काम भया निधि अपनी ॥१॥ रे जनम जात है बादि याद करि पीवकों, मुसकल सब आसांन होयगी जीवकों जाके रिदे में रांम रेन दिन रहेत हे, मुक्ति मांझ नहीं फेर साध सब कहत है ||२|| राम नांमकी बूटि फळी हे जीवको, निसवासर बाजिंद समर ले पीवको, ईन्ह वात पर सिध कहत सब गांवरे, अधम अजात मेल तर्यो ओक रांम के नांवरे ॥३॥ गाफिल रहे वो वीरकूं हो कयुं वणत हे, अमांनसके सास सो जुंरा गणत हे जागि लागि हरिनांई कहां लगी सोई हे, चक्की के मुख मांहि पर्यो सो मेंदा होत हे ॥४॥ आज सो तो नही काल्ही कहेत हो उजको, भावे वैरी जाण जीवमें मुजको देखत आपणी द्रिष्ट खता कहां खात हे, लोहा को सो ताव वध्यौ ही जात हे ॥५॥ भूल्यो माया मोह मौत न सूझही, सूत दारा धन धाम आपनो बूझही हरिको नाम अज्ञान हिरदे नही आणही, दीवा सो बूझी जाद भमावै मांही ॥६॥