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अनुसन्धान-७५(२)
श्रीपुण्यसागर मुनि रचित 'अंजनासुन्दरी पवनंजय रास' (खण्ड-१)
सं. - प्रा. अनिला दलाल
ई. १७मी सदीना पूर्वार्धमां पीपल गच्छमां थयेला जैन साधु पुण्यसागर लक्ष्मीसागरसूरिनी परम्परामां कर्मसागरसूरिना शिष्य हता. तेमणे रचेली आ कृति 'अंजनासुन्दरी पवनंजय रास' ८ ढाळ अने ६४२ कडीनी छे – (रचना ई. १६३३ - संवत १६८९, श्रावण सुद पांचम.) साधु कविओ आ माहिती कृतिना पहेला खण्डने अन्ते आपी छे (त्रीजा खण्डने अन्ते पण आपी छे). गुजराती मध्यकालीन साहित्यकोश प्रमाणे तेमनी अन्य कृतिओमां 'नयप्रकाश-रास' (र. ई. १६२१), ६ कडी- 'शान्तिनाथ स्तवन' अने ९ कडीनुं 'शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन' छे.
संशोधन-लिप्यन्तर करवा माटे आ रासनी झेरोक्स हस्तप्रत, क्रमांक १३७१८, मने श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबामांथी प्राप्त थई छे. पुष्पिकानी माहितीना आधारे तेनुं लेखन संवत १७१५ मागसर सुद अष्टमीना दिवसे थयेलुं छे. कोबा केन्द्रमांथी ज कृतिनी बीजी हस्तप्रत क्रमाङ्क ००३२३, पण मळी छे, जेनुं लेखन १७९२मां थयेलुं छे. ओ साथे राखी हती; अमां लहियाओ पोतानी समज प्रमाणे घणा फेरफार कर्या होय अq लाग्युं छे, पाठभेद घणा ज थई जाय. केन्द्र परथी जाणवा मळ्या प्रमाणे रचना अ-प्रकाशित छे.
इतिहास तेमज लोककथा पर आधारित आ रचना कथात्मक छे. राससाहित्यमां जेम भिन्न भिन्न कथाघटको (motifs) प्रयोजायेला जोवा मळे छे तेम प्रस्तुत कृतिमां पत्नीना चारित्र्य पर शंका अने परिणामे सती स्त्रीने सहेवा पडतां कष्टो - ए घटक लेवामां आव्युं छे. पछीथी सतीनुं पति साथे मिलन थाय छे. कविनो आशय चरित्र आलेखी शीलनो महिमा करवानो छे. समग्र कृतिना कथानकने त्रण खण्डमां विभाजित कर्यु छे. पहेलां खण्डमां १८१ कडी, बीजामा २२२ अने त्रीजामा २३५. (आम ६३८ थाय छे) आरम्भमां श्री गौतम गणधरने वन्दना करी सरस्वतीदेवीनी स्तुति करे छे, गुरुगुणनी प्रशस्ति करे छे. आटली वन्दना पछी कवि मूळ कथा भणी वळे छे.
वार्ता एक सीधी रेखामां (linear) आगळ वधे छे, अने अन्त सुधी ओ ज पद्धतिने वळगी रहे छे. मध्यकालीन साहित्यमां घणीये वार अन्य वार्ताओ वच्चे वच्चे गुंथाय छे, अq अहीं नथी. अलबत्त, बोधप्रधान अने धर्मविषयक उपदेश तेम ज