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अनुसन्धान-७५(२)
केटलांक शब्दो सामिणि = स्वामिनी
मांडइ = शणगारवू ? सायाणा = स्वजन
धूरति = धूर्त गारा = गौरव
अग्गहि = आग्रह लहुरा = लघु ?
सेहर = मुगट, कोई अलङ्कार कामदुगा = कामदुधा, कामधेनु । जंपइ = बोले पुनग = सर्प, पन्नग
आओसा = आदेश चंचग = सुंदर
असराल = झडपथी कीर = पोपट
जुगति = संगत नकवेसर = नाकनी वाळी
बाली = तरुणी, कन्या विद्रुम = लालरत्न-परवाळु
अहिनाणू = अभिज्ञान विचि = वच्चे [आषाढभूति धमाल, आषाढभूति चरित्र - ओ बे उपरान्त कवि कनकसोमे 'आषाढभूति रास'नी रचना करी छे एम एक लेख परथी प्रतीत थाय छे : (सन्दर्भ : "जैन रास विमर्श" - सं. अभय दोशी - ए पुस्तकमां डॉ. गंगाराम गर्गनो लेख - 'आषाढभूति रास'- मूल्याङ्कन.) जे प्रकाशित छे. 'धमाल' अने 'चरित्र' अप्रगट छे.]
श्री जिनाय नमः राग जयतश्री : डाहरी मिश्री ॥
श्री जिन वदन निवासिनी समरी सारद' माया रे आषाढभूत गुण गावतां सामिणि करउ पसाया रे ..... चतुर सनेही वालमा ३ सवि गुण जाण सायाणा रे आषाढभूति महामुनी देखत चित्त लुभाणा रे..... १.....च० राजगिरी पुरु वर भलइ' इंदपुरी अवतारा रे वन वारी आरामतई सोभत पउलि पगारा रे..... २.....च० राज करइ सिंघरथ तिहां न्यायवंत गुणजाणइ रे
च्यार वरण मानइ सदा आदर करि प्रभु आणा रे..... ३.....च० १. सरसति, २. सामण, ३. मोहना, ४. सयाणा, ५. राजगृही पुरवर भलउ, ६. सोभित पोलि प्रकारा रे, ७. राज्य करे सिंहरथ तिहां.