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सप्टेम्बर २०१८
पूज पधारे विहरता धर्म्मरुची अणगारा रे समवसर्या उद्यानमइं पंचसया परिवारा रे...... तासु सीस आषाढ मुनी बहु बुधि' लबधि भंडारा रे गुरु आदेश लही करी विहरति नगर मझारा रे...... सुन्दर मन्दिर देखि कई नटुवाकइ घरि जाइ रे धर्म्मलाभ देइ तिहां भोजन देखि सजाइ रे..... विहिरि मोदिक रिषि चिंतवइ ओ हम गुरुकउं होइ रे लबधइं भेख नवा करी मोदिक दूजा लेइ रे......
विद्यागुरुकुं सही थविर रूप करि आवइ रे नटुवी करुण रसभरी ती मोदिक विहरावइ रे...... अ लहुरा" चेला भणी हमहुं चउथा भावइ १२ रे सुन्दर रूप रच्यउ वली लोभई चित्त ललचावइ रे...... मोदिक लेइ रिषि चले करि करि नवला३ लेखा रे लबध करंता गृहणी १४ नयणे मुणिवर देख्या रे ......
नटुवा वंद भावस्युं हम तुम्हार निज दासा रे
लउ सब कुछ जे चाहीयइ १६ पूरी अमारी आसा रे......
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दूइ दिनि मोदिक करली" वली मुनीसर आवइ रे नटुवा घरि भीतर जइ बहु" मोदिक विहरावई .... नटुवइ पुत्री सीखवी मुनिवर मन मोहइ रे हावभाव विभ्रम करी कामदुगा घरि दोहउ रे...... भुवनसुन्दर(री) जयसुन्दरी मनमोहन वरनारी रे जनमनरंजन अवतरी गोरी रति अनुकारी रे......
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४..... च०
५..... च०
६..... च०
७..... च०
८..... च०
९..... च०
इयहु नटुवा होवहि भला रंजइ लोक अनेका रे
मेलइ लखमी यहु" घणी जइ घरि रहइ विवेका रे..... ११.....च०
१०.....च०
१२.....च०
१३..... च०
१४..... च०
१५.....च०
८. विधि, ९. तई, १०. वहिरावइ रे, ११. लहुडा, १२. भाग आवइ रे, १३. नव नव, १४. गृहपति, १५. अति, १६. चाहियें, १७. मोदक स्ली, १८. वली.