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________________ २४० अनुसन्धान-७५(२) मच्छ गलागल कीधा ए, जलचारि पद लीधा ए, सीधा एए(के) काज न आपणां ए ॥५७।। वृश्चिक-सर्प-निकुल हिवे, वाघ-सिंघ-चीतर भवे, तिहां सर्वे सबल मेल्या दुरितना ए ॥५८॥ सीचाणादिक हं थयो, नरगिं जावा अलजीयो, नवि लीयो पाप पुण्यनो आंतरु ए ॥५९॥ पशुय पणे इंम भमीयो ए, योनि लाख वो रमीयो ए, दमीयो ए वधबंधे करी सुहने ॥६०॥ सातभेदें थयो नारकी, निविवेक तिर्यंग थकी, पातकी हुं अपराधी ताहरो ए ॥६॥ दोहिलि दश वेअण सही, काल असंख तिहां रही, हुं सही च्यार लाख योनि भम्यो ए ॥६२॥ जगजीवन जिन सांभलो, दश दृष्टांते दोहिलो, अभि(ति) भलो नरभव काल घणे लह्यो ए ॥६३।। ऊंधे शिर टंगाणो ए, कर्मबंध बंधाणो ए, टांगूं ए गरभवासनो तिहां भलूं ए॥६४॥ उट्ठ कोडी सूइ तापवी, विधं तनुं को मानवी, अनुभवी एहथी अट्ठगुणी व्यथा ए ॥६५॥ अस्सह वेअण वहे ए, धर्म करुं संदेहे ए, गेहेइ ए जोजणस्ये मुझ माडली ए ॥६६।। नीच गोत्र अवतर ए, निसुण्यो धर्म लिगार ए, त्यारे ए सदगुरु सेवा नवि लही ए ॥६७॥ देश अनारज वसीओ ए, पाप तणे रस रसीओ ए, धसीओ ए विरूआ कर्म भणी घणूं ए ॥६८।। कर्मबलि पाछो वलिओ, चउवीस दंडक वली रुलिओ, नवि मिल्यो स्वामी को मुझ तारको ए ॥६९॥ दूहा ऊंच-नीच कुल अवतरिओ, कीधा मध्यम काम । विरति पखे मां हुं थयो, न लह्यो भव विश्राम ॥७०॥
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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