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________________ सप्टेम्बर २०१८ आलु" पिंडालू" वली, घणा जीवनो पंड रे । अनंतकाय बत्रीसना, कह्या नांम प्रचंड रे ॥ सु० ॥४४॥ ॥ दूहा ॥ इत्यादिक अनेक छे, अनंतकायना भेद । बादर एह निगोदमां, हुं पांम्यो निर्वेद ॥ ४५ ॥ सूइ अग्र अनंतमे, भागें हुं बहुवार । वेचाणो निस्संबलो, किण्ही न कीधा सार ॥४६॥ काल असंख तिहां रह्यो, साधारण सरूप । चऊद लाख योनि भम्यो, अइ अइ कर्म विरूप ॥४७॥ ढाल - राग - सामेरी । वंछीत पुरण सुरतरु । ए देशी ॥ श्री सीमंधर स्वामी ए, तिहुयण अंतरजांमी ए, पामीए जे गति कहुं ते आपणी ए ॥४८॥ एक शरीरे एक ए, जीव थयो प्रत्येक ए, छेक ए दुःखनो नवि आव्यो प्रभो ॥ ४९ ॥ छेदन भेदन जे सह्यां, ते मे नवि जाय कह्या, निरवह्या काल असंख तिहां वसीए ॥ ५० ॥ योनि लाख दश फरसीए, तेह वणस्सइं सरसी ए, विरसी ए पुष्प - पत्र - फल वेयणा ए ॥५१॥ वलि विगलिंद्री हुं थयो, काल संख्यातो तिहां रह्यो, सासह्यो दुःख ऊपजतो परवसें ए ॥५२॥ बि-ति-चउ विगलींदी तणी, योनि लाख बि-ब भणी, जगधणी ते पिण मे सह्युं अणुसरी ए ॥५३॥ पूरी पर्याप्त पखे, अंतर्मुहूर्त्तने आउखे, सो दुःखी बहुवार असन्नीओ ए ॥५४॥ कुछित योनि ऊपनो, चउद ठाणमां नीपनो, संपन्नो अनुक्रमि हुं दश प्रांणनो ए ॥ ५५ ॥ त्रिहुं भेदें तिर्यंच ए, जल-थल - खचर प्रपंच ए. संचय मांड्यो तिहां वली पापनो ए ॥५६॥ २३९
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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