SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२० अनुसन्धान-७५(२) भरत ओरसीउ भरतनें, मिल्यां सुरनर टुंग समझावो सुकडि प्रतें, हजी न उडइ उंघ पुंणी पर्वत आगलइ, मांडइ निज माहात्म्य । कूप डेडकी किम लहइ, गुरु सरोवर गम्य वयण न मानइ माहरूं, खरी हठीली एह उपदेस्युं अरीहंतनु, हिवइ सुणावो तेह कहइ चक्कवइ कर जोडिनें, चउविह संघ समीप भगवन गणधर भाखीइं, प्रभु अनेकांत प्रदीप श्री गणधर कहइ सांभलो, आदि जिणेसर वांणि । पक्षपातने परीहरी, मुंकी ताणोताणि ढाल - १३ मी नदी जमुना के तीर उडइ दो पंखीयां - ए देशी आदीश्वर जिन वांणी प्रांणी सांभलो गणधर भाखइ एम मुको मन आंमलो चक्कवइ चउविह संघ सुर्रिद उलटपणइ ओरसीउ सुकडि बइठां सहुइ सुणइ कारण विण कारज निपजई नवि जाणीइ जिनभाषित जाण्या विण कांइ न ताणीइ चक्र दंडादिक विण जो जगि घट निपजइ तो वंझा उयरिं सुपरि सुत संपजइ । कारण कीजइ किहां किणि काल थाइ नहि तो पणि पुनरपि कारणे ते हुइ सही तिणि कारणिं पंच कारण भाख्यां जिनवरई काल स्वभाव नियत कर्म उद्यम सम परइं जिहां हुइ धूम वह्नि तिहां निश्चइ लहो जिहां वह्नि तिहां धूमतणी भजना कहो तिम कारज कारणस्युं करीइ योजना तात्त्विक कारणे कारज होइ निश्चइय जना ३ ४
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy