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________________ २१९ सप्टेम्बर - २०१८ ओ समकित सरस चंदन रसें, शांत कीधा च्यार कषाय रे ओ व्रत नियमें विचरइ सदा, तिणि अवरति दूर पलाय रे १६ ओ० ओ श्रावक व्रत पालइ भलां, साचवइ हिंसानां ठाम रे ओ जिनभाषित सप्तक्षेत्रमें, वावरइ वित्त शक्ति उद्दाम रे १७ ओ० यतः खंडणी पेखणी चुल्ली, जलकुंभी प्रमार्जनी पंच सूना गृहस्थस्य, तेन स्वर्गं न गच्छति १ ओ कुवचन कोई बोलइ नही, न करइ अकराकर काम रे ओ रयणीभोजननें तजें, न भखइ अभक्षनुं नाम रे १८ ओ० ओ आगम रसना धुंटडा, सांभलि सुहगुरुनइ पासि रे । ओ अनुभवरस मीठो घणुं, लावइ मनमांहिं उल्लासि रे १९ ओ० ओ सहज चिदानंदरस भर्यो, झीलइ अध्यातममांहि रे पुदगलने खेल न राचतो, न पडें परमादें क्याहि रे २० ओ० ओ श्रावक वली श्राविका, ओ साधु साधवी सार रे । भावप्रभसूरि कहइ धन्य जे, धरइ जैनधर्म हितकार रे २१ ओ० दूहा कहइ ओरसीउ सांभलो, इम होइ अर्थ अनेक व्यस्त समस्त पद चालना, कविजन लहइ विवेक १ धर्म थकी स्युं हुइ जगें, कुण ग्रह साहमो छांडि कुण अंतस्था अंतनो, ते जिनस्युं लय माडि २ संभवः कुंण जनपद निरसो कह्यो, कुण वसइ स्वर्ग मझार वंध्या वांछइ केहनें, कुण शत्रुजय सार ३ मरुदेवा पुत्र कुण असरीरी भाखीइ, कहीइ केह्वो वाय मोटु पद कुण गृहस्थनें, कहेवो भरत कहाय ४ सिद्धाचल संघपतिः जीव स्वभाव केहवो हुइ, कुण थिर मोटइ देह संसारे स्युं पांमीइ, स्युं करइ डाहो तेह ५ विमलगिरि जाय
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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