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सप्टेम्बर २०१८
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संगति भई तो कहा भया, रिदय भया कठोर नवनेजा पांणी चढइ, तउइ न भीजइ कोर बीहता इंद्रथी बापडा, रह्या दरियामांहि बूडि दीठां बल डुंगरतणां, हुइ तुं स्यानें हूड
॥२॥
॥३॥
ढाल - रसीयानी - ९मी
सीखामणि तुझनें लागइ नही, ताहरी तो अवली रे रीत ओरसीया अन्य जातिं संगति तुं वांछतो, पणि नवि बाझइ रे प्रीति ओ० ॥१॥ वाद न कीजइ हो विण शक्ति किहां, जिम मंकोडो रे रांक ओ० गुल गुंण भारवहन अभिमानता, कहइ छइ कइडनो लांक ओ० ॥ वा० टेक तरुवरजाति जगें मोटी कही, उपगारीमे रे रेह ओ०
वणसइकाय अनंती जिन कहइ, जेहनो नावइ रे छेह ओ० ॥२॥ वा० अशोकवृक्ष जिनेसर उपरिं, पल्लव पोढी रे छाय ओ०
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समवसरण शोभावइ चिहुंदिशि, शोकनिवारण थाय ओ० ||३|| वा० आरामशोभानें शोभा धरी, करी सहवा (का) री रे छाय ओ०
जिन पूजा फल माहात्मथी थयु, एहवुं शास्त्रं गवराय ओ० ॥४॥ वा० महीयल मोटा कलपतरु कह्या, वंछित पूरइ रे वेग ओ० शीतल छाई सहूने सुख करई, धरइ ते जानइ रे तेग ओ० ॥५॥ वा० जंबू आदि दश रुअर भलां, जिहां जिनवरना प्रासाद ओ० ईग्यारसें सित्तेर संख्या थकी, उपजइ दीठां आह्लाद ओ० ||६|| वा० विमल कमलमांहिं कमला वसइ, तरुवरें चितरवास ओ०
घासें जीवें जगि सघलां पशु, विण धन तृणना आवास ओ० ||७|| वा० जिनहर मंदिर मनोहर मालीयां, लक्कड कोट कमाड ओ०
रायण अंब इत्यादिक फल भलां, लोकनां - पूरइ रे लाड ओ० ||८|| वा० चंदन मूरति जीवित स्वामिनी, हासा प्रहासापति कीध ओ०
नृप उदायन वीतभय पाटणइं, जेह पूजाणी प्रसिद्ध ओ० ॥९॥ वा०
नाटक करती दारु पूतली, तिम नाटकीयाना वृंद ओ०
प्रतिमा आगलि भविजन देखतां, रोपइ समकीतनो कंद ओ० ॥ १० ॥ वा०