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अनुसन्धान-७५(२)
पूर्वढाल -
स्यु मुख लेई बोलतो एह सभामें आज ला० । सुखी मुझ साहमो थयो निलज्ज नावइ लाज ला० ७ सु० कटकइ बटकइ त्रटकतो निरस तुं पत्थर पिंड ला० भरतें पखाल्यो हाथस्युं तव थयो लाडनो लिंड ला० ८ सु० होडि करइ तुं माहरी, पामीसि घणी अवहेला ला० तरु जाति मोटी अह्मे, करु उपगारइं केलि ला० ९ सु० जन काजें घटनें ग्रहइ, कोई न झालइ चाक ला० शीतें वस्त्रनें संग्रहइ, कोई न उढइ त्राक ला० १० सु० कारणने स्युं कीजीइ, कार्य सेती काम ला० पटें बंधाइ न पोहिरो, बांधइ गाठइ दाम ला० जउ पणि नैगमनयतणा, प्रस्थादिक दृष्टांत ला० कथन मात्र ते जांणीइ, अंत्य गमइ नीराति ला० १२ सु० तद्भव तारी नवि सक्या, श्रेणिकनें जिनराज ला० स्वोपादांन काचइ छतइ, काचं कारण साज ला० १३ सु० मलकि गाल ए स्युं करइ, स्यु करइ नियति भारत्थ ला० स्युं कर्म स्युं उद्यम करइ, स्वभाव एक समरत्थ ला० १४ सु० श्री मरुदेवी माडली, गज उपरि गई सिद्ध ला० कुण कारण एहनें भज्युं, सहज स्वभाव प्रसिद्ध ला० १५ सु० परमाणु जे अमतणा, परिमल भेट्या सोय ला० स्वोपादान परिणति छतइ, ईच्छइ न कारण कोय ला० १६ सु० सुगंध क्रिया| अह्मतणुं, ते ताहरु नवि थाय ला० सगपणि ते सोनुं सदा, पीतल प्रीति कहाय ला० १७ सु० तुझ हृदयें नवि परिणमइ, सीखामणनी सुवास ला० श्रीभावप्रभसूरि कहइ, सुकडि वयण प्रकाश ला० १८ सु०
यतः
इहा
संगति कीजइ साधुकी, हरइ उरांकी व्याधि ओछी संगति नीचकी, आठां पुर उपाधि
॥१॥