________________
सप्टेम्बर
-
२०१८
ढाल
[१]
वीर वखाणी रांणी चेलणाजी - ए देशी
नयरी अयोध्याइं आवीया जी, तातजी ऋषभजिणंद समवसरण सुभ सुर रचइ जी, सेवता चओसठि इंद ॥१॥ धन दिन जिनजी समोसर्या जी, भरतरं वधामणी दीध तातनइ चरणे आवी नम्यो जी, प्रभुतणी देशन पीध ध० आंकणी देशना अंतई अरिहंतनई जी, पूछता भरत राजान
संघपति पद समझावीइ जी, सुणि तव कहइ भगवान ॥२॥ ० तीर्थंकर पद जिम जगइं जी, संघपति पद तिम जांण भाग्य विना नवि पांमीइ जी, जेहथी सकल कल्याण ||३|| ६० इंद्रपद चक्रिपद जगि भलां जी, शुभतर तेहथी एह
तीर्थंकर नाम गोत्रनई जी, उपजावइ सही तेह ||४|| ध० अरिहंतनइं पणि मांनवा जी, योग्य ए संघपद सार तेनो अधिप वली जे हुइ जी, लोकोत्तर अधिकार ॥५॥ घ० चउविह संघसहितस्युं जी, वासना शुभ वहंत
देवगृह रथ उपरि धरई जी, विविध उच्छवस्युं वहंत ॥६॥ ६० पंचविध दान देतो जगइं जी, ग्रामपुर जिहां जिनगेह
विचित्र पूजा ध्वजरोपणा जी, समकितवासित देह ||७|| ध० शत्रुंजयादिक तीर्थनी जी, जे करइं इणि विधि यात्र संघपति तेहनें भाखीइ जी, पग पग पोषइ सुपात्र ॥८॥ घ० पूजवा योग्य संघपति हुइ जी, सुरवरनई पणि जाण आदि जिणेसर इम कहइ जी, केतलुं कीजइ वखा ॥ ९ ॥ ० सुरपति तव कहइ भरतनई जी, धरि संघपतिपद भूप निजमुख त्रिभुवननायकें जी, जस फल भाख्युं अनुप ॥ १० ॥ घ० संघपतिपद तव धारवा जी, भरतनृप थया उजमाल
धवल दीयां तव सुहवइं जी, रमझम ताल कंसाल ॥११॥ ६० उठ्या देवदेवी सहू जी, संघसहित जिनराय
आखेवास नाख्यां शिरें जी, भरतनई हरख न माय ॥ १२ ॥ घ०
१९७