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सप्टेम्बर - २०१८
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भरतराय संघपति बनी श्रीशत्रुजय महातीर्थनो संघ काढे छे, गिरिराज पहोंची वर्द्धकि रत्न द्वारा शत्रुजयगिरि ऊपर सौ प्रथम मन्दिरो बनावडावे छे ने प्रतिमाजी भरावी अंजन-प्रतिष्ठा उत्सव मंडावे छे. ते महोत्सव समये चक्रवर्ती प्रभुनी पूजा, विधिविधान माटे सुखडनो नानो टूकडो (सुकडि) हाथमां लई ओरसिया उपर एक घसरको करे छे त्यारे सुकडिने ओरसीयानो संग नथी गमतो तेथी चक्रवर्तीने विनति करे छे ने वात वातमां सुकडि अने ओरसिया वच्चे वाद थाय छे, झघडो कही शकाय एवो. ए वादने संवादमय बनावे छे कविश्री भावप्रभसूरिजी, जे प्रस्तुत रचनामां ज जोईशुं.
___ आवी रचना करवानो उल्लास सूरिजीने क्यारे जाग्यो तेनी वात तेओ अन्तिम ढाळमां कहे छे. प्रसिद्ध पाटण नगरमां जयतसी सुत तेजसी दोसीए सहस्रकूट मन्दिर बनाव्युं तेनो प्रतिष्ठा उत्सव श्रीभावप्रभसूरिजीनी निश्रामा कराव्यो. आ अन्तिम ढाळनी १० गाथा बाद, वच्चे ए प्रतिष्ठा प्रसंगनो उल्लेख करती 'रूपक ढाल'नी ७ गाथा नोंधे छे जेमां लखेल छे के 'वि.सं. १७७४ना जेठ सुदि आठमे - सोमवारे स्वगुरु श्रीभावप्रभसूरि पासे दोसी जयतसी पुत्र तेजसीए सहस्रकूट नामर्नु तीरथ करावी प्रतिष्ठा करावी'. प्रस्तुत रासनी पूर्णताए सूरिजी लखे छे के 'प्रतिष्ठाना प्रसंगथी कविहृदयनी उर्मि जागतां भावप्रभसूरिजीए शिवसुखना हेतुभूत जिनस्तुति स्वरूप आ सुकड ओरसियानो संवाद रास वि.सं. १७८३ ना श्रावण सुद ७ ना रविवारे रच्यो'. साथे रास पूर्ण करतां कविश्री एक खुलासो करे छे के रासमां वच्चे जे अनागतकाळना दृष्टान्त कह्या छे ते कालना उपचारथी जाणवा.
प्रस्तुत रास १६ ढाळमां पथरायेल छे. आ रासनी १४ पत्रनी झेरोक्स प्रति पर 'ला. द. भेट सुरक्षा 4960' लखेल छे.
प्रतिलेखनमां लहियानो क्यांक हस्व-दीर्घ अंगे उपयोग ओछो रह्यो छे. क्यांक एक ज शब्दने बे जग्याए अलग लख्या छे ते यथावत् ज राख्या छे. ओरसियामां 'ओ'ना स्थाने घणी वखत 'उ' (उरसियो) लख्यो छे जे सुधारी दरेक स्थाने 'उ'नो 'ओ' करी दीधो छे. एकंदरे अक्षर सुवाच्य छे.
विशेष नोंध : प्रस्तुत रासनी रचनाना निमित्त विशे -
पाटणमा हालमा 'मणियाती पाडामां' श्रीसहस्रकूट मन्दिर घरदेरासर मोजूद छे, नानकडं पण रमणीय पित्तलमय बिम्ब छे, जेना ऊपर महिमाप्रभसूरिजी- नाम वंचाय छे. आ गृहजिनमन्दिरनो वहीवट वर्तमानमां पाटणना नगरशेठ कुटुंब हस्तक छे,