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अनुसन्धान-७५(२)
भावप्रभसूरिजी-रचित सुकडि ओरसिया संवाद रास
सं. - साध्वी दीप्तिप्रज्ञाश्री
विक्रमनी अढारमी सदीना उत्तरार्धमां थई गयेला पूर्णिमागच्छीय श्री विद्याप्रभसूरि → ललितप्रभसूरि → विनयप्रभसूरि → महिमाप्रभसूरि शिष्य भावप्रभसूरि, जेओश्रीए अनेक रास, चोविशी, वीसी, चोपाई अने अनेक सज्झायो वगेरेनी रचना करी छे जेमांनी वि.सं. १७६९ मां 'श्री हरिबल मच्छीनो रास', वि.सं. १७७५मां 'श्री अंबड रास', त्यारबाद पोताना गुरुनो 'श्री महिमाप्रभसूरि निर्वाण कल्याणक रास' वि.सं. १७७२मां, ते पछी वि.सं. १७९७मां 'श्री सुभद्रासतीनो रास', वि.सं. १७९९मां 'श्री बुद्धि विमला सती रास'नी रचना करी छे. विशेषमां तेमणे सं. १७५४मां पाटण, ढंढेरवाडामां रहीने 'श्रीचन्द्रप्रभसूरि रास'नी रचना करी हती, तेवी पण विगत जाणवा मळे छे.
तेओश्रीनुं विचरण क्षेत्र प्रायः उत्तर गुजरात हशे एम कल्पना करी शकाय. 'हरिबल मच्छी रास' तेओश्रीए रूपपुर गाम (पाटणनी नजीक आवेला चाणस्मानी बाजुमां आवेलुं छे)मां अने बाकीना रास पाटणमां ढंढेरवाडामां रच्यानो उल्लेख 'जैन गूर्जर कविओ'मां छे.
श्रीभावप्रभसूरिजीनी एक अप्रगट रचना 'सुकडि ओरसिया संवाद रास' अहीं प्रस्तुत करी छे.
सामान्यथी वाद के संवाद चेतन-चेतन वच्चे थाय, ज्यारे अहीं कविनी कल्पना जड एवा सुकडि ने ओरसिया वच्चेनी छे. अने ते द्वारा कुलाचारनी रीतिनीतिने वादमां वणीने मजानो संवाद रच्यो छे, जे नर-नारीने जीवन- आचारदर्शन करावी जाय छे.
रासनी मांडणी करतां सूरिजी आ अवसर्पिणीना प्रथम तीर्थंकर श्रीऋषभदेवना काळमां पहोंची जाय छे.
'ऋषभजिणंद अयोध्यामां पधार्या छे, समवसरण रचायुं छे ने भरत चक्रवर्ती पिताने वंदन करवा आवे छे, देशना सांभली भरतजी प्रभुने पूछे छे संघपति पद एटले शुं? अने प्रभुजी स्वमुखे संघपतिपदनो महिमा वर्णवे छे, ए सांभळी देवेन्द्रनी विनतिथी