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सप्टेम्बर - २०१८
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राज-रधि भविभवि पामीइ,
धन-यौवन-मन वीसामीइ । कर्म-विसेषिइं सहू सलंभ,
एक ज जिण-वर-धर्म दुलंभ ॥२२॥ कमलि-पानि जिम दीसइ नीर,
तिम धन-योवन अथिर सरीर । जिम जाता दीसई आगिलां,
तेह जि वाट होसिइं पाछिलां ॥२३।। सुगुरु तणउं सांभलि संकेत,
पाप म करि रे जीव अचेत । कर्म-वसिइं जीव पडिउ विनाणि,
धर्म तणी पुणि होसिइ हाणि ॥२४॥ सधर क्रिया जु चेतसि आप,
तु कांई छूटिसि भवदह पाप।। घणा दिवस आगई नीगम्या,
तरुणपणई मोह-दलि रम्या ॥२५।। आवइ इत्थ जरा तणी धाडि,
__ हिव जीव चीतवि धर्म मुहाडि । गण्या दिवस माहि होसिइ फेड,
सहू को करइ पिआरी केड ॥२६॥ 'द्रोअठमि जुहारइ माइ,
छांटइं छडउ दिवारइं माहि । करइ अणघपउ कथा संभारि,
मूरख खरचइं रतान विवारि ॥२७॥ माय-बाप-घर-बंधव-पूत्र,
ए सहूइ माया नउं सूत्र । वाल्हउं आपह केरउं काजा,
कांइं रे निफटह अजी न लाजा ॥२८॥
१. ध्रुवअष्टमी २. व्यवहारमा ३. नफट