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________________ सप्टेम्बर - २०१८ १८१ राज-रधि भविभवि पामीइ, धन-यौवन-मन वीसामीइ । कर्म-विसेषिइं सहू सलंभ, एक ज जिण-वर-धर्म दुलंभ ॥२२॥ कमलि-पानि जिम दीसइ नीर, तिम धन-योवन अथिर सरीर । जिम जाता दीसई आगिलां, तेह जि वाट होसिइं पाछिलां ॥२३।। सुगुरु तणउं सांभलि संकेत, पाप म करि रे जीव अचेत । कर्म-वसिइं जीव पडिउ विनाणि, धर्म तणी पुणि होसिइ हाणि ॥२४॥ सधर क्रिया जु चेतसि आप, तु कांई छूटिसि भवदह पाप।। घणा दिवस आगई नीगम्या, तरुणपणई मोह-दलि रम्या ॥२५।। आवइ इत्थ जरा तणी धाडि, __ हिव जीव चीतवि धर्म मुहाडि । गण्या दिवस माहि होसिइ फेड, सहू को करइ पिआरी केड ॥२६॥ 'द्रोअठमि जुहारइ माइ, छांटइं छडउ दिवारइं माहि । करइ अणघपउ कथा संभारि, मूरख खरचइं रतान विवारि ॥२७॥ माय-बाप-घर-बंधव-पूत्र, ए सहूइ माया नउं सूत्र । वाल्हउं आपह केरउं काजा, कांइं रे निफटह अजी न लाजा ॥२८॥ १. ध्रुवअष्टमी २. व्यवहारमा ३. नफट
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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